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________________ ५०८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज नाम की श्रेणिक की एक अन्य रानी का उल्लेख आता है ।' ___ आवश्यकचूर्णी के अनुसार श्रेणिक के अनेक पुत्र थे । अनुत्तरोपपातिकदशा (१) में श्रेणिक के निम्नलिखित दस पुत्रों के नाम आते हैंजालि, मयालि, उवयालि, पुरिससेण, वारिसेण, दोहदंत, लट्टदंत, वेहल्ल, वेहायस और अभयकुमार | इनमें से पहले सात धारिणो, वेहल्ल (अथवा हल्ल) और वेहायस ( अथवा विहल्ल) चेल्लणा और अभयकुमार नंदा को कोख से पैदा हुए थे। उक्त आगम के दूसरे प्रकरण में दोहसेन, महासेन, लट्ठदंत, गूढदंत, सुद्धदंत, हल्ल, दुम, दुमसेण, महादुमसेण, सीहसेण, महासीहसेण और पुण्णसेण का उल्लेख मिलता है। इन सब पुत्रों ने जैन दोक्षा धारण कर निर्वाण-पद प्राप्त किया। काल, सुकाल, महाकाल, कण्ह, सुकण्ह, महाकण्ह, वीरकण्ह, रामकण्ह, सेणकण्ह महासेणकण्ह नाम के श्रेणिक के अन्य पुत्र बताये गये हैं, जो काली, सुकाली, महाकाली आदि रानियों से पैदा हुए थे । काल आदि दस राजकुमारों का राजा कुणिक के साथ मिलकर, वैशाली के गणराजा चेटक से युद्ध करने का उल्लेख मिलता है ।” नंदिसेण और कूणिक (अजातशत्र ) श्रेणिक के अन्य पुत्र थे। नंदिसेण के सम्बन्ध में विशेष जानकारी नहीं मिलती। हम केवल इतना हो जानते हैं कि वह श्रेणिक के प्रिय हस्ती सेचनक को अनुशासन में रखता था और उसने जैन दीक्षा ग्रहण कर ली थी।' राजा कूणिक (अजातशत्रु ) कूणिक राजा श्रेणिक का दूसरा पुत्र था। हल्ल और विहल्ल उसके सगे भाई थे। तीनों रानी चेल्लणा से पैदा हुए थे। कूणिक को अशोकचन्द्र, वजिविदेहपुत्त अथवा विदेहपुत्त भी कहा गया है। कहते हैं कि जब कूणिक पैदा हुआ तो उसे नगर के बाहर एक कूड़ी पर छोड़ दिया गया । वहाँ उसकी कन उंगली में एक मुर्ग को पूंछ से चोट लग गयो, और इस समय से वह कणिक कहा जाने लगा। दूसरो परम्परा के १. निशीथचूर्णी प्रीठिका, पृ० १७ ।। २. २, पृ० १६७। ३. निरयावलियाओ१। ४. वही २। ५. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १७१; वही, पृ० ५५९ । ६. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६६ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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