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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
सुभानु आदि को, तथा बलदेव ने सुमुहकुमार, दुम्मुह, कूवदारय, निसट कुज्जवारअ, और ढंढ आदि को जन्म दिया । "
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वसुदेव के दो रानियां थीं, एक देवको और दूसरी रोहिणी । देवकी से कृष्ण और रोहिणी से बलदेव पैदा हुए। जराकुमार को कृष्ण का ज्येष्ठ भ्राता कहा गया है; वह कृष्ण के वध का कारण हुआ । पांडुमथुरा के शासक पंच पांडवों ने दीक्षा ग्रहण करते समय जराकुमार को राजसिंहासन पर बैठाया । जराकुमार के प्रपौत्र का नाम जितशत्रु बताया गया है । वह वृष्णिकुमार ससअ और भस नाम के अपने दो पुत्रों के साथ वणवासी में राज्य करता था
।
कंस मथुरा के राजा उग्रसेन का पुत्र था। जब वह पैदा हुआ तो उसे भाग्यहीन जानकर एक सन्दूक में रख यमुना नदी में बहा दिया गया । सोरिय के किसी व्यापारी के हाथ में वह पड़ा और उसने उसे राजगृह के राजा जरासंध को सौंप दिया । जरासंध ने अपनी कन्या जीवयशा से उसका विवाह कर दिया । कंस मथुरा में आकर रहने लगा; उसने उग्रसेन को बंदी बना लिया और वह मथुरा का राजा बन बैठा ।
लघु
कहते हैं कि एक बार जीवयशा वसुदेव को पत्नी देवकी को अपने कंधे पर बैठाकर बड़े गर्व से नृत्य कर रही थी । इतने में कंस के भ्राता मुनि अतिमुक्तककुमार को आते हुए देखकर, उसने उन्हें भी अपने साथ नृत्य करने के लिए कहा। इस पर अतिमुक्तककुमार ने भविष्यवाणी की कि देवकी के सातवें पुत्र के हाथ से कंस का वध होगा । यह सुनकर कंस ने वसुदेव की सातों सन्तानों को पहले से ही मांग लिया | उसने देवकी को छहों सन्तानों को मार डाला | लेकिन
१. देखिए वसुदेवहिंडी, पृ० ७७-७८ आदि; ११० आदि; ३५७ आदि; उत्तराध्ययनटीका २२ - १ आदि, पृ० ३७, ३९, ४५ - अ; अन्तःकृद्दशा ३, पृ० ८, २२; कल्पसूत्रटीका ६, पृ० १७२ - ७८; निरयावलियाओ ५ ।
२. उत्तराध्ययनटीका २, पृ० ३६ - अ आदि ।
३. वही, पृ० ४२ अ ।
४. बृहत्कल्पभाष्य ४.५२५५ आदि ।
५. दूसरी परम्परा के अनुसार, देवकी ने आठ पुत्रों को जन्म दिया, जिनमें से छह को हरिणेगमेषी ने भद्रिलपुर की सुलसा के मृत पुत्रों से बदल दिया । सातवें पुत्र का नाम कृष्ण वासुदेव और आठवें का नाम गजसुकु