________________
परिशिष्ट २
५०१
पुर' में राज्य करते थे, फिर द्वारका में राज्य करने लगे । अंधकवृष्णि के दस पुत्र ( जो दशार - दशाह कहे जाते थे ) थे और कुन्ती और माद्री नाम की दो पुत्रियां । दशार्ह राजाओं में समुद्रविजय प्रमुख थे, बाकी के नाम हैं अक्खोभ, थिमिअ, सागर, हिमव, अयल, धरण, पूरण, अभिचंद और वसुदेव । पहले वे मथुरा में राज्य करते थे, बाद में जरासंघ के भय से द्वारका चले आये । भोजवृष्णि के उग्रसेन और देवक नाम के दो पुत्र थे | भोगकुल में उत्पन्न उग्रसेन के बंधु, सुबंधु, कंस और रायमती (राजोमती ) आदि, तथा देवक के देवकी नाम की सन्तान हुई | उधर, अंधकवृष्णि के पुत्र समुद्रविजय के अरिष्टनेमि और रथनेमि दो पुत्र हुए। अंधकवृष्णि के दूसरे पुत्र वसुदेव थे । उनके वासुदेव, बलदेव, जराकुमार, अकूर, सारंग, सुहदारंग, अणाहिट्ठी, सिद्धत्थ, गयसुकुमाल आदि सन्तानें हुईं । कृष्ण ने पज्जुराण, संब, भानु,
घटजातक ( ४५४) । जैन टीकाकारों ने अंधकवृष्णि शब्द की विचित्र व्युत्पत्तियां दी हैं - अंधगवहिणोति अंह्निपा - वृक्षास्तेषां वह्नयस्तदाश्रयत्वेनेत्यंह्निपवह्नयो बादरतेजस्कायिका इत्यर्थः । अन्ये त्वाहुः - अंधकाः - अप्रकाशकाः सूक्ष्म नाम कर्मोदयाद्ये वह्नयस्ते अंधकवह्नयो जीवाः, व्याख्याप्रज्ञप्तिटीका १८.३,
पृष्ठ ७४५-अ ।
१ - कल्पसूत्र टीका ६, पृ० १७१ ।
२ - अन्तःकृद्दशा १, पृ०५ ।
३ - दशार राजाओं का वर्णन बंधदशा के चौथे अध्याय में दिया गया है, यह आगम आजकल अनुपलब्ध है, स्थानांग १०.७५५ । संयुत्तनिकाय २, २०.७.७, पृ० २२२ में उन्हें क्षत्रियों का एक वर्ग कहा है । द्वघोष के अनुसार वे अनाज का दसवां हिस्सा ग्रहण करने के कारण दशार्ह कहे जाते थे, संयुक्तनिकायटीका २, पृ० २२७ । तथा देखिए महाभारत २.४०.५ ।
४. दशवैकालिक चूर्णी, पृ० ४१ ।
५. वही, पृ० ८८ । दशवैकालिकसूत्र ( २.८ ) में राजीमती ने अपने आपको भोगराज की कन्या बताया है और हरिभद्रसूरि ने भोगराज और उग्रसेन को एक माना है ।
६. हरिभद्रसूरि ने दशवैकालिकसूत्र की टोका ( २८ ) में अंधकबृष्ण और समुद्रविजय को एक स्वीकार किया है, जब कि उत्तराध्ययन सूत्र ( २२.४ ) में अरिष्टनेमि को समुद्रविजय की सन्तान माना है ।