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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज महावीर ने तोस वर्ष को अवस्था में संसार त्याग कर दीक्षा ग्रहण को | कहते है कि एक वष से कुछ अधिक समय तक महावीर ने सवस्त्र विहार किया, उसके बाद वे नग्न अवस्था में विचरण करने लगे । १२ वर्ष तक कठोर साधना के पश्चात् उन्होंने जभियग्राम के बाहर ऋजुवालिका नदी के किनारे केवलज्ञान प्राप्त किया। महावीर ने पावा के हस्तिपाल राजा की रज्जुकसभा में अन्तिम चातुर्मास व्यतीत किया और ७२ वर्ष को अवस्था में कार्तिक वदी अमावस्या के दिन निर्वाण पाया । जिस रात्रि को महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया, काशो और कोशल के १८ गणराजाओं ने प्रौषधपूर्वक दीपक जलाकर सर्वत्र प्रकाश किया | अन्तिम समय में महावीर ने शुभ और अशुभ कर्मों से सम्बन्धित पचपन और अशुभ कर्मों के फल से सम्बन्धित पचपन व्याख्यान दिये, तथा बिना पूछे हुए प्रश्नों के ३६ उत्तरों का प्रतिपादन किया।
बाकी के तीर्थंकर प्रायः अयोध्या, हस्तिनापुर, मिथिला और चम्पा आदि स्थानो में जन्मे तथा सम्मेदशिखर पर उन्होंने सिद्धि पायी।
बारह चक्रवर्ती चक्रवर्तियों का सबसे प्राचीन उल्लेख समवायांग में मिलता है। भरत को प्रथम चक्रवर्ती कहा है । वे ऋषभ और सुमंगला के पुत्र थे, जैसा कि कहा जा चुका है | भरत ने अपने चक्ररत्न को सहायता से दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया, तथा जम्बूद्वीप के पूर्व में स्थित मगध, दक्षिण में स्थित वरदाम, और पश्चिम में स्थित प्रभास नामक पवित्र तीर्थों, तथा सिन्धु देवी, वैताठ्य और तिमिसगुहा पर विजय पायो । तत्पश्चात् चर्मरत्न द्वारा महान् सिन्धु नदी को पार कर सिंहल, बर्बर, अंग, चिलात (किरात), यवनद्वोप, आरबक, रोमक और अलसंड नामक
वंशपुराण, अध्याय दूसरा । लेकिन ध्यान देने की बात है कि उपर्युक्त ग्रन्थ में (६६.८) वीर के यशोदा के साथ 'विवाहमङ्गल' का उल्लेख किया गया है।
१. देखिए, आवश्यकनियुक्ति ३८२ आदि; उत्तराध्ययनसूत्र ६; उत्तरा. ध्ययनटीका १८, पृ० २४४ आदि; ज्ञातृधर्मकथा ८; कल्पसूत्र ६.१७०-८४; वसुदेवहिंडो पृ० ३००, ३०४, ३४० आदि, ३४६ आदि ।
२. उनके नाम हैं-भरह, सगर, मघव, सणक्कुमार, सन्ति, कुंथु, अर, सुभोम, महापउम, हरिसेण, जय और बंभदत्त, सूत्र १२; तथा आवश्यकनियुक्ति ३७४. आदि; स्थानांग १०.७१८ ।