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परिशिष्ट २
नेमि अथवा अरिष्टनेमि २२ वें तीर्थकर माने गये हैं। वे सोरियपुर के राजा समुद्रविजय को रानी शिवा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । कृष्णवासुदेव उनके चचेरे भाई थे। अरिष्टनेमि का पाणिग्रहण उग्रसेन को कन्या राजीमतो से होने जा रहा था । लेकिन जब वे अपनी बारात लेकर मथुरा पहुंचे तो रास्ते में उन्हें बरातियों के खिलाने के लिए बाड़े में बाँधकर रक्खे हुए पशुओं की चीत्कार सुनायो पड़ी। यह देखकर वे मार्ग में से हो लौट पड़े और दीक्षा ग्रहण कर रैवतक (गिरनार) पर्वत पर तप करने लगे । यहीं से उन्होंने निर्वाण-लाभ किया। राजीमती भी इस पर्वत पर आकर तप करने लगो । उसने भी यहीं से सिद्धि पाई।
पाश्र्वनाथ २३ वें तीर्थकर हो गये हैं। उनका जन्म बनारस में हुआ था, और सम्मेदशिखर से उन्होंने सिद्धि प्राप्त को। ___ वर्धमान महावीर, जिन्हें ज्ञातृपुत्र' नाम से कहा गया है, जैनों के अन्तिम तीर्थंकर थे । बौद्ध ग्रथों में उन्हें निग्गंठ नाटपुत्त कहा है। वे गणराजा सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशला के गर्भ से चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को वैशालो के उपनगर क्षत्रियकुण्डग्राम में पैदा हुए थे। सिद्धार्थ को श्रेयांस अथवा यशस्वी (जसंस) भी कहा है। उनका गोत्र काश्यप था । महावीर की माता त्रिशला वसिष्ठ गोत्र की थी, और वे विदेहदता, अथवा प्रियकारिणी भी कहो जाती थी। सुपाश्व महावोर के चाचा, नंदिवधन उनके ज्येष्ठ भ्राता, सुदर्शना उनकी बहन, कौडिन्यगोत्रीय यशोदा उनको पत्नी तथा प्रियदर्शना अथवा अनवद्या उनकी कन्या थी। प्रियदर्शना का विवाह जमालि के साथ हुआ था। उसके गर्भ से शेषवती अथवा यशोमती का जन्म हुआ।
जा सकती है। जातकों में इन्हें महाजनक द्वितीय कहा गया है। रामायण और पुराणों के अनुसार, नमि मिथिला के राजपरिवारों के संस्थापक थे, रतिलाल मेहता, प्री बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० ४८ आदि; राय चौधुरी, पोलिटिकल हिस्ट्री आव ऐशियट इण्डिया, पृ० ४५; चरक २६, पृ० ६६५ ।
१. उत्तराध्ययन २२ । २. देखिए इसी पुस्तक के प्रथम खण्ड का प्रथम अध्याय । ३. अन्य नामों के लिए देखिए शूबिंग, डाक्ट्रीन्स आव द जैन्स, पृ० २९ ।
४. कल्पसूत्र '५ । दिगम्बरों की मान्यता के अनुसार, महावीर देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में अवतरित नहीं हुए। वे अविवाहित ही रहे, तथा दीक्षा ग्रहण करते समय उनके माता-पिता जीवित थे। देखिए जिनसेन, हरि