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________________ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज जैन परम्परा के अनुसार, ऋषभदेव असंख्य वर्षों तक राज्य का संचालन करते रहे। तत्पश्चात् भरत को राज्य सौंपकर उन्होंने श्रमण दीक्षा स्वीकार की। राजा भरत विनीता के प्रथम चक्रवर्ती घोषित किये गये । ऋषभ ने अपने साधु-जोवन में दूर-दूर तक परि• भ्रमण किया। वे बहली और अडंब (? अंबड) आदि में भ्रमण करते हुए हस्तिनापुर आये जहां कि बाहुबलि के पौत्र राजा श्रेयांस ने उन्हें इक्षुरस का आहार दिया। ऋषभ ने पुरिमताल के शकटमुख उद्यान में कवलज्ञान प्राप्त किया और अष्टापद पवत से मुक्ति पायो ।' मल्लि को जैनधर्म में १९ वां तीर्थकर माना गया है। श्वताम्बर सम्प्रदाय में उन्हें स्त्री तथा दिगम्बर सम्प्रदाय में पुरुष माना है। कहते है कि मल्लि के रूप-गुण की प्रशंसा सुनकर उसे प्राप्त करने के लिए कोशल, अंग, काशी, कुणाल, कुरु और पंचाल के राजाओं ने मल्लि के पिता राजा कुम्भक के ऊपर चढ़ायी कर दी थी। नमि, जो राजांष कहे जाते थे, २० वे तीर्थकर हो गये है। वे युगबाहु और मदनरेखा के पुत्र थे । युगबाहु को जब अपने भाई द्वारा हत्या को गयो तो नमि गर्भावस्था में थे । यह काण्ड देखकर मदनरेखा भय से जंगल में भाग गयी ओर उसने वहां पुत्र को जन्म दिया। वहां से मिथिला का राजा पद्मरथ बालक को उठा लाया और उसने उसे अपनी रानी को सौंप दिया। कुछ समय बाद, पद्मरथ ने दीक्षा ग्रहण की और नाम का राजसिंहासन पर अभिषेक किया गया। कालान्तर में राजा नमि ने भी दीक्षा ले लो। उनकी गणना करकंडु, दुर्मुख और नग्नजित् नाम के प्रत्येकबुद्धों के साथ को गयी है। चारों का क्षितिप्रतिष्ठित नगर में आगमन हुआ था। १. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, सूत्र २.३०-३, कल्पसूत्र ७.२०५-२२८; आवश्यकनियुक्ति १५० आदि; आवश्यकचूर्णी पृ० १३५-८२, वसुदेवहिंडी पृ० १५७६५, १८५; त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पृ० १०० आदि । २. मल्लि के स्त्रीतीर्थ को दस आश्चर्यों में गिना गया है, बाकी के नौ आश्चर्य हैं-उपसर्ग, गर्भहरण, अभावित परिषद् , कृष्ण का अवरकंका-गमन, चन्द्र-सूर्य का अवतरण, हरिवंश कुल की उत्पत्ति, चमर-उत्पाद, अष्टशतसिद्ध तथा असंयतों की पूजा, कल्पसूत्र, पृ० २५-अ । ३. ज्ञातृधर्मकथा ८ । ४. उत्तराध्ययनसूत्र ९। ५. वही १८.४६ । नमि की पहचान महाभारत के राजर्षि जनक से की
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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