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परिशिष्ट २ . .
चौबीस तीर्थंकर चौबीस तीर्थंकरों के सम्बन्ध में सबसे प्राचीन उल्लेख समवायांग, कल्पसूत्र और आवश्यकनियुक्ति में मिलता है। ऋषभदेव और भरत ने सुषमा-दुषमा नामक तीसरे काल में जन्म लिया था, जब कि अवशिष्ट तेईस तीर्थंकर, ग्यारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव, नौ वासुदेव और नौ प्रतिवासुदेवों ने दुषमा-सुषमा नाम के चौथे काल में जन्म ग्रहण किया।
ऋषभदेव प्रथम राजा, प्रथम साधु, प्रथम जिन और प्रथम तीर्थकर माने गये हैं। उन्होंने नाभि और उनकी रानी मरुदेवो के घर इक्ष्वाकुभूमि ( अयोध्या) में जन्म लिया था। कहते हैं कि जब ऋषभदेव का जन्म हुआ तो इन्द्र इक्षु को लेकर नाभि राजा के पास पहुँचा और ऋषभदेव ने इसे ग्रहण करने के लिए हाथ फैलाया। इसी समय से इक्ष्वाकुवंश की उत्पत्ति हुई । ___ इस काल के रिवाज के अनुसार ऋषभदेव ने सुमङ्गला और सुनन्दा नाम की अपनी बहनों से विवाह किया । कालान्तर में सुमङ्गला ने भरत और ब्राह्मो को तथा सुनन्दा ने बाहुबलि और सुन्दरी को जन्म दिया । ऋपभदेव जब विनीता के सिंहासन पर आरूढ़ हुए तो उन्होंने उग्र, भोग, राजन्य और क्षत्रिय नाम के चार गणों की स्थापना की। ___इस काल में लोग कच्चे कन्द-मूल खाते थे; ऋषभदेव ने उन्हें मिट्टी के बर्तनों में पकाकर खाना सिखाया । इस समय कुम्हार, लुहार, बुनकर, बढ़ई और नाइयों की उत्पत्ति हुई। ऋषभदेव ने ब्राह्मी को वर्णमाला, सुन्दरी को गणित, भरत को रूपकर्म और बाहुबलि को चित्रकर्म की शिक्षा दी । इस प्रकार पुरुषों की ७२ कला, स्त्रियों की ६४ कला तथा १०० साधारण शिल्पों का जन्म हुआ। इस काल में नागयज्ञ, इन्द्रमह, विवाहसंस्था, तथा मृतकों की स्मृति में स्तूपनिर्माण की परम्परा प्रचलित हुई।
१. उसभ, अजिय, संभव, अभिनन्दन, सुमइ, पउमप्पभ, सुपास, चन्दप्पह, सुविहि, पुप्फदंत, सीयल, सेज्जंस, वासुपुज्ज, विमल, अनन्त, धम्म, सन्ति, कुंथु, अर, मल्लि, मुणिसुव्वय, नाम, अरिहनेमि, पास और बद्धमाण ये चौबीस तीर्थकर कहे गये हैं, समवायांगसूत्र २४; कल्पसूत्र ६-७; आवश्यकनियुक्ति ३६९ आदि; शूबिंग, डॉक्ट्रीन्स ऑव द जैन्स, पृ० २३ ।