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________________ परिशिष्ट १ ४८९ - आभीर देश भी जैन श्रमणों का केन्द्र रहा है। आर्य समित' और ब्रजस्वामी ने यहां विहार किया था। यहां कण्हा (कन्हन) और वेण्णा ( वेन ) नदियों के बीच में ब्रह्मद्वीप अवस्थित था जहां अनेक तापस रहा करते थे। कल्पसूत्र में बंभदीविया शाखा का उल्लेख आता है। तगरा इस देश की राजधानी थी। यहां राढाचार्य ने विहार किया था। तगरा की पहचान उस्मानाबाद जिले के तेरा नामक स्थान से की जाती है। लाट देश का उल्लेख भी जैन ग्रंथों में मिलता है, यद्यपि इसकी गणना पृथक रूप से आर्य देशों में नहीं की गयो । यहां वर्षाऋतु में गिरियज्ञ नामक उत्सव तथा श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के दिन इन्द्रमह मनाया जाता था। इस देश में वर्षा से ही खेती होती थी। भृगुकच्छ ( भडोंच ) लाट देश की शोभा माना जाता था। व्यापार का यह बड़ा केन्द्र था। आचार्य वज्रभूति का यहां विहार हुआ था। मामा की लड़की से यहां विवाह जायज था, मौसा की लड़की से नहीं।'' भृगुकच्छ और उज्जैनो के बीच पचीस योजन का अन्तर था। ११ उत्तर गुजरात में आनंदपुर (बड़नगर ) भी जैन श्रमणों का केन्द्र था । इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनधर्म का उदय विहार में हुआ और वह वहीं फूला-फला । क्रमशः उत्तरप्रदेश के पूर्वीय और कतिपय पश्चिमी १. आवश्यकटीका (मलय ), पृ० ५१४-अ । २. आवश्यकचर्णी, पृ० ३९७ । ३. आवश्यकटीका ( मलय ), पृ० ५१४-अ । ४. ८, पृ० २३३ । ५. उत्तराध्ययनटीका २, पृ० २५ । ६. बृहत्कल्पभाष्य १.२८५५ । ७. निशीथचूर्णी १९.६०६५, पृ० २२६ । ८. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति १.१२३९ । ९. व्यवहारभाष्य ३.५८ । १०. निशीथचूर्णीपीठिका १२६ । .. ११, आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६० । १२. निशीथचूर्णी ५.२१४०, पृ० ३५७ । . ..
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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