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________________ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज यहां श्रमणपूजा (समणपूय ) नाम का बड़ा भारी उत्सव मनाया जाता था ।' यहां का राजा सातवाहन था । पादलिप्त सूरि और कालकाचार्य ने इस भूमिको अपने बिहार से पवित्र किया था । जिनप्रभसूरि के समय प्रतिष्ठान में ६८ लौकिक तीर्थ थे । ४८८ कोंकण में जैन श्रमणों ने बिहार किया था । इस देश में अत्यधिक वृष्टि के कारण जैन श्रमणों को छतरो रखने का विधान है। यहां मच्छर बहुत होते थे। यहां के लोग फल-फूल के शौकीन थे ।" गिरियज्ञ नाम का उत्सव यहां मनाया जाता था । पश्चिमी घाट तथा समुद्र के बीच का स्थल प्राचीन कोंकण माना जाता है । यहाँ शूर्पारक ( सोप्पारय) व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र था । वज्रसेन, आर्य समुद्र और आर्यमंगु आदि आचार्यों ने यहां विहार किया था । महाभारत में इस नगर का उल्लेख आता है । बम्बई के पास ठाणा जिले के सोपारा नामक स्थान से इसको पहचान की जाती है । गोल्ल देश का उल्लेख जैन आगमों में अनेक स्थलों पर आता है । यहां अत्यधिक शीत होने के कारण जैन श्रमणों को वस्त्र धारण करने की अनुमति दी गयी है ।" यहां आम की फाँक करके उन्हें सुखाया जाता, और फिर उन्हें पानी में धोकर उनसे आम्र-पानक बनाया जाता" । जैन परम्परा के अनुसार, चंद्रगुप्त का मंत्री चाणक्य यहीं का निवासी था । श्रवणबेलगोला के शिलालेखों में गोल्ल और गोल्लाचार्य का उल्लेख मिलता है, इससे पता लगता है कि यह प्रदेश दक्षिण में ही होना चाहिए | गुन्टूर जिले में गल्लरु नदी पर स्थित गोलि हो प्राचीन गोल्ल देश मालूम होता है । १. निशीथ चूर्णी, १०.३१५३, पृ० १३१ । २. पिंड नियुक्ति ४९७ आदि । ३. आचारांगचूर्णी, पृ० ३६६ ४. सूत्रकृतांगटीका ३.१.१२ । ५. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति १. १२३९ । ६. वही, १.२८५५ । ७. बृहत्कल्पभाष्य १.२५०६ । ८. आवश्यकचूर्णी, पृ० ४०६ । ९. व्यवहारभाष्य ६.२३९ आदि । १०. आचारांगचूर्णी, पृ० २७४ । ११. वही, पृ० ३४० ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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