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________________ ४८६ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज नामक दो भागों में विभक्त था । भगवान् महावीर ने यहां विहार किया था और उन्हें अनेक कष्ट सहन करने पड़े थे । यहां गांवों की संख्या बहुत कम थी इसलिए महावीर को रहने के लिए वसति मिलना भी दुर्लभ होता था। वज्रभूमि के निवासी रूक्ष भोजन करने के कारण स्वभाव से क्रोधी होते थे और वे महावीर को कुत्तों से कटवाते थे। लाढ को सुह्म भी कहा गया है । व्याख्याप्रज्ञप्ति में सोलह जनपदों में संभुत्तर ( सुझोत्तर = सुह्म के उत्तर में , की गणना की गयी है। आधुनिक हुगली, हावड़ा, बांकुरा, बर्दवान, और मिदनापुर जिलों के पूर्वीय भागको प्राचीन लाढ़ बताया है। ___ कोटिवर्ष लाढ़ जनपद को राजधानी थी। कोडिवरिसिया नामक जैन श्रमणों को शाखा का उल्लेख मिलता है। गुप्तकालीन शिलालेखों में इस नगर का उल्लेख है । कोटिवर्ष की पहचान दोनाजपुर जिले के बानगढ़ नामक स्थान से को गयी है। __ २५||-केकय जनपद श्रावस्ति से पूर्व की ओर नेपाल की तराई में स्थित था । उत्तर के केकय देश से यह भिन्न है । इसके आधे भाग को आर्य देश स्वीकार किया गया है, इसका तात्पर्य है कि इसके आधे प्रदेश में ही जैन धर्म का प्रचार हुआ था, संभवतः बाकी के आधे में आदिमवासी जातियां निवास करती हों। सेयविया ( श्वेतिका ) केकयो की राजधानी थी। बौद्ध सूत्रों में इसे सेतव्या कहा है और इसे कोशल देश की नगरी बताया है। श्वेतिका से गंगा नदी पार कर महावीर के सुरभिपुर पहुँचने का उल्लेख मिलता है। जैनधर्म के अन्य केन्द्र इन साढ़े पच्चीस आर्य क्षेत्रों के अतिरिक्त, अन्य स्थलों में भी जैनधर्म का प्रचार हुआ था। भद्रबाहु, स्थूलभद्र आदि जैन श्रमणों ने नेपाल में विहार किया था। यहां स्थूलभद्र ने भद्रबाहु स्वामी से पूर्वो १. आवश्यकनियुक्ति ४८३; आचारांग ९.३ । २. आवश्यकनियुक्ति ४६२; आचारांग, वही; देखिये यही पुस्तक १.१. पृ० ११ । ३. कल्पसूत्र ८, पृ० २२७-अ । ४. दीघनिकाय २, पायासिसुत्त, पृ० २३६ । ५. आवश्यकनियुक्ति ४६९-७० ।।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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