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परिशिष्ट १
४८१ प्रतिमा के दर्शन करने के लिए यहाँ राजा सम्प्रति के समकालीन आर्य सहस्ति पधारे थे। इसके अतिरिक्त, आचार्य चंडरुद्र, भद्रकगुप्त, आर्यरक्षित, तथा आर्य आषाढ़ आदि जैन श्रमणों ने यहां विहार किया था। जैन साधुओं को यहाँ कठोर परीषह सहन करनी पड़तो थो।
चण्ड प्रद्योत का यहाँ राज्य था। आगे चलकर सम्राट अशोक का पुत्र कुणाल यहाँ का सूबेदार हुआ, और इसीके नाम से उज्जयिनी का दूसरा नाम कुणालनगर रक्खा गया । कुगाल के पश्चात् राजा सम्प्रति का राज्य हुआ। आचार्य कालक ने राजा गर्दभिल्ल के स्थान पर ईरान के शाहों को बैठाया था। बाद में राजा विक्रमादित्य ने अपना राज्य स्थापित किया। सिद्धसेन दिवाकर विक्रमादित्य को सभा के एक रत्न माने गये हैं। दिगम्बर जैन परम्परा के अनुसार, सम्राट चन्द्रगुप्त ने यहाँ भद्रबाहु से दीक्षा ग्रहण कर दक्षिण की यात्रा की थी।
उज्जयिनी व्यापार का प्रमुख केन्द्र था । किसी समय बौद्धों का यहाँ जोर था और अनेक बौद्ध मठ यहाँ बने हुए थे। माहेस्सर और श्रीमाल की भाँति यहाँ के निवासी भी मद्यपान के शौकीन थे।' आचार्य हेमचन्द्र के समय यह नगरी विशाला, अवंति और पुष्पकरंडिनी नाम से भी प्रख्यात थो।
१६-चेदि ( बुन्देलखण्ड का उत्तरो भाग) में राजा शिशुपाल राज्य करता था । बौद्ध श्रमणों का यह केन्द्र था । - शुक्तिमतो चेदि को राजधानी थी। महाभारत में इसका उल्लेख है । सुत्तिवइया जैन श्रमणों को एक शाखा थो। बांदा जिले के आसपास के प्रदेश को शुक्तिमती कहा जाता है।
१. बृहत्कल्पभाष्य १.३२७७ । २. वही ६.६१०३ आदि । ३. आवश्यकचूर्णी पृ० ४०३ । । ४. दशवैकालिकचूर्णी पृ० ९६ । ५. बृहत्कल्पभाष्य ५.५७०६ । ६. संस्तर ८२, पृ० ५८।। ७. आवश्यकनियुक्ति १२७६; आवश्यकचूर्णी २,१० १५४ । । :.. ८. आचारांगचूणी २.१, पृ० ३३३ । . ९. अभिधानचिंतामणि ४.४२ । ३१ जै