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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज परिशिष्ट १ विदिशा के समीप कुञ्जरावर्त और रथावर्त नाम के दो पर्वतों के होने का उल्लेख मिलता है। ये दोनों पर्वत पास-पास थे। कुंजरावर्त का उल्लेख रामायण में आता है। इस पर्वत पर वज्रस्वामी ने निर्वाणलाभ किया था। रथावर्त पर्वत को महाभारत में पवित्र माना गया है। इस पर्वत पर वज्रस्वामो के ५०० श्रमणों को लेकर आने का उल्लेख है । यहां से वे तप करने के लिए कुञ्जरावर्त पर्वत पर चले गये ।
मालवा की गणना पृथक रूप से आर्य देशों में सम्भवतः इसलिए नहीं की गयी कि जैनधर्म के परम उद्धारक कहे जाने वाले अवंतिपति राजा सम्प्रति यहीं के निवासी थे, और यहीं से उन्होंने जैनधर्म का प्रचार करने के लिए अपने कर्मचारी दूर-दूर तक भेजे थे । मालवा के बोधिक चोरों का उल्लेख महाभारत तथा जैनग्रन्थों में आता है।' ये लोग उज्जैनी के लोगों को भगाकर ल जाते थे। टंक और सिंधु देशवासियों की भांति यहां के निवासी अपनी कठोर भाषा के लिए प्रसिद्ध थे।" हुएनसांग के समय मालवा विद्या का केन्द्र था और यहां अनेक मठ-मंदिर बने हुए थे।
अवन्ति मालवा की राजधानी थी । दक्षिणापथ की यह मुख्य नगरी मानी जाती थी। ईसवी सन् की सातवीं-आठवीं शताब्दी के पूर्व मालवा अवन्ति के नाम से प्रख्यात था। आगे चलकर अवन्ति पश्चिमी मालवा का प्रदेश कहलाने लगी। यहां की मिट्टो काली होती थी, अतएव बौद्ध भिक्षुओं को स्नान करने और जूत पहिनने की अनुमति थी । इसकी पहचान मालवा, निमाड़ और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों से की जाती है। ___ उज्जयिनी दक्षिणापथ का सबसे महत्त्वपूर्ण नगर था। इसे उत्तर अवन्ति (मालवा) की राजधानी कहा गया है। जीवन्तस्वामी
१. मरणसमाधि ४७२ आदि, पृ० १२८-अ । तथा देखिए वसुदेवहिण्डी, पृ० १२२, रामायण ४.४१ । ____२. मरणसमाधि ४७० आदि, पृ० १२८; मलयगिरि, आवश्यकटीका, पृ० ३९५-अ।
३. ६.९.३९ । ४. निशीथचूर्णी १६.५७२५ । ५. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति ६.६१२६; निशीथचूर्णी २.८७४ ।