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४७८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [परिशिष्ट १ यहां संखडि का पर्व मनाया जाता था। यहां ऋषभनाथ और नेमिनाथ के विश्वविख्यात मंदिर हैं जिन्हें लाखों रुपया खर्च करके निर्माण किया गया है। इनमें से एक १०३२ ई० में विमलशाह का और दूसरा १२३२ ई० में तेजपाल का बनवाया हुआ है । दोनों ही मंदिर नीचे से लगाकर शिखर तक संगमर्मर के बने हैं। जिनप्रभसूरि के समय यहां अचलेश्वर, वशिष्ठाश्रम आदि अनेक लौकिक तीर्थ मौजूद थे।
१७-अच्छा को गणना जनपदों में को गयी है। बुलन्दशहर के आसपास का प्रदेश अच्छा माना गया है।
वरणा ( अथवा वरुण ) अच्छा को राजधानी थी । वारण गण और उच्चानागरी शाखा का उल्लेख कल्पसूत्र में आता है, इससे प्रतीत होता है कि यह प्रदेश जैन श्रमणों का केन्द्र था । महाभारत में भी इसका उल्लेख है । वरणा की पहचान बुलन्दशहर से की जाती है, जो उच्चानगर का ही भाषान्तर है। आजकल यह वारन के नाम से प्रसिद्ध है। चीनो साधु फाच्युआंग (४२४-४५३ ई०) नगरहार से वैदिश जाते समय वरुण होकर गया था।
१८-दशाण (भिलसा के आसपास का प्रदेश) जनपद का उल्लेख महाभारत में मिलता है। यहां की तलवारें बहुत अच्छी मानी जाती थी।
मृत्तिकावतो दशाण को राजधानी थी। ब्राह्मणों की हरिवंशपुराण में इसका उल्लेख आता है। यह नगरो नर्मदा के किनारे अवस्थित थो।" मालवा में बनास नदी के पास अवस्थित भोजों के देश को मृत्तिकावती कहा गया है।
वइदिस अथवा विदिशा (भिलसा) को मेघदूत में दशार्ण की राजधानो बताया गया है। यहां महावीर की चन्दननिर्मित मूर्ति थी। आचार्य महागिरि और सुहस्ति ने यहां विहार किया था। भरहुत के
१. बृहत्कल्पभाष्य १.३१५० । २. ८, पृ० २३२-अ। ३. एपिग्राफिका इंडिका, जिल्द १, १८९२, पृ० ३७९ ।
४. द ज्योग्रेफिकल कण्टैण्ट्स ऑव महामायूरी, जरनल यू० पी० हिस्टोरिकल सोसायटी, जिल्द १५, भाग २ ।
५. हरिवंशपुराण १.३६.१५ । ६. आवश्यकनियुक्ति १२७८ ।