SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट १ ४७७ भद्रिलपुर मलय की राजधानी थी । इसकी गणना अतिशय क्षेत्रों में की गयी है। इसकी पहचान हजारीबाग जिले के भदिया नामक गांव से की जाती है। यह स्थान हंटरगंज से छह मील के फासले पर कुलुहा पहाड़ी के पास है । अनेक खंडित जैन मूर्तियां यहां मिली हैं। __इस प्रदेश का दूसरा महत्वपूर्ण स्थान सम्मेदशिखर (पारसनाथ हिल) है। इसे समाधिगिरि, समिदगिरि, मल्लपर्वत अथवा शिखर भी कहा गया है । इस की गणना श@जय, गिरनार, आबू और अष्टापद नामक तीर्थों के साथ को गयी है। जैन परम्परा के अनुसार २४ तीर्थंकरों ने यहां से निर्वाण प्राप्त किया है । १६-मत्स्य ( अलवर के आसपास का प्रदेश ) जनपद का उल्लेख महाभारत में भी आता है।। वैराट या विराटनगर ( वैराट, जयपुर के पास) मत्स्य की राजधानी थी । मत्स्य के राजा विराट की राजधानी होने के कारण इसे वैराट या विराट कहा जाता था। पांडवों ने यहां गुप्त वनवास किया था । बौद्ध मठों के धंसावशेष यहां उपलब्ध हुए हैं। यहां के लोग अपनी वीरता के लिए विख्यात माने जाते थे। पुष्कर को जैनसूत्रों में तीर्थक्षेत्र बताया गया है। उज्जयिनो के राजा चंडप्रद्योत के समय यह तीर्थ विद्यमान था । महाभारत में इसका उल्लेख है। यह स्थान अजमेर से लगभग छह मील की दूरी पर है। भिल्लमाल अथवा श्रीमाल ( भिनमाल, जसवंतपुर के पास ) में वज्रस्वामी ने विहार किया था। यहां द्रम्म नाम का चांदी का सिक्का चलता था। छठी शताब्दो से लेकर नौवीं शताब्दी तक यह स्थान श्रीमाल गुर्जरों को राजधानी रही है। वह स्थान उपमितिभवप्रपंचा कथा के कर्ता सिद्धषि और माघकवि को जन्मभूमि थी ।। अब्बुय ( अर्बुद = आबू ) जैनों का प्राचीन तीर्थ माना गया है। १. डिस्ट्रिक्ट गजेटियर हजारीबाग, पृ० २०२ । २. आवश्यकनियुक्ति ३०७; तथा ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० १२०; आचारांगचूर्णी, पृ० २५७.। ३. आवश्यकचूर्णी, पृ० ४०० आदि; निशीथचूर्णी, १०. ३१८४ की चूर्णी, पृ० १४६ । ४. बृहत्कल्पभाष्य वृत्ति १.१९६९; निशीथचूर्णी १०.३०७० की चूर्णी; प्रबन्धचिंतामणि २, पृ० ५५ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy