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परिशिष्ट १
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अनेक पक्षी, लताओं आदि से सुशोभित था। यहां पानो के झरने' थे
और लोग प्रतिवर्ष संखडि मानने के लिए एकत्रित होते थे। यहां भगवान् अरिष्टनेमि ने निर्वाण प्राप्त किया है, इसलिए इसकी गणना सिद्धक्षेत्रों में को जाती है । राजीमती (राजुल) ने यहां तप किया था। उसको यहां गुफा बनी हुई है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार, यहां की चन्द्रगुफा में आचार्य धरसेन ने तप किया था, और यहीं भूतबलि और पुष्पदंत आचार्यों को अवशिष्ट श्रतज्ञान को लिपिबद्ध करने का आदेश दिया था । गुजरात के प्रसिद्ध जैन मंत्री तेजपाल ने यहां अनेक मंदिरों
का निर्माण कराया है। __प्रभास ( सोमनाथ ) को महाभारत में सर्वप्रधान तीर्थों में गिना है। इसे चन्द्रप्रभास, देवपाटन अथवा देवपट्टन भी कहा है। प्रयाग को भांति आवश्यकचूर्णी में प्रभास को जैन तीर्थ माना है।
पुंडरीक (शत्रुजय ) जैनों का आदि तीर्थ माना गया है। जैन परम्परा के अनुसार यहां पांच पांडव तथा अन्य अनेक ऋषि-मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया। राजा कुमारपाल के राज्य में लाखों रुपये व्यय करके यहां के मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया।
वलभी ( वळा ) प्राचीन काल में सौराष्ट्र की राजधानी थी। ईसवी सन् की छठी शताब्दी में देवर्धिगणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में जैन आगमों को संकलित करने के लिए यहां जैन श्रमणों का अन्तिम सम्मेलन हुआ था। यहां प्राचीन काल के अनेक सिक्के और ताम्रपत्र उपलब्ध हुए हैं । हुएनसांग के समय वलभी में अनेक बौद्ध विहार विद्यमान थे। - १२-विदेह (तिरहुत ) मगध के उत्तर में अवस्थित था। ब्राह्मण ग्रन्थों में विदेह को जनक की राजधानी कहा गया है । बौद्धसूत्रों में जो
१. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति १.२९२२ ।
२. आवश्यकनियुक्ति ३०७; कल्पसूत्र ६.१७४, पृ० १८२; ज्ञातृधर्मकथा ५, पृ० ६८, अन्तःकृद्दशा ५, पृ० २८; उत्तराध्ययनटीका २२, पृ० २८० ।
३. इसकी उत्पत्ति के लिए देखिए सोरेनसन, इण्डैक्स टू महाभारत, पृ० ५५३ ।
। ४. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १९७ । ध्यान देने की बात है कि निशीथचूर्णी ११.३३५४ को चूर्णी में प्रभास, प्रयाग, श्रीमाल और केदार को कुतीर्थ कहा है।
५. उत्तराध्ययनटीका २, पृ० ४३, अन्तःकृद्दशा २, पृ० ७; ४, पृ. २३ ।