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________________ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ परिशिष्ट १ वाराणसी काशी की राजधानी थी । वरणा और असि नाम की दो नदियों के बीच अवस्थित होने के कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा। बौद्धसूत्रों में वाराणसी को कपिलवस्तु, बुद्धगया और कुसीनारा के साथ पवित्र तीर्थों में गिना गया है । ब्राह्मण ग्रन्थों में, पूर्व में वाराणसी, पश्चिम में प्रभास, उत्तर में केदार और दक्षिण में श्रीपर्वत को परम तोर्थ माना गया है । जैन ग्रन्थों के अनुसार यहां भेलपुर में पार्श्वनाथ और भदैनी में सुपाश्वनाथ तीर्थंकर का जन्म हुआ था । महावीर ने इस स्थान को अपने विहार से पवित्र किया था । नगर के उत्तर-पूर्व में मयंगतीर ' ( मृतगंगातीर ) नाम के एक तालाब (हृद) का उल्लेख मिलता है जहां गंगा का बहुत-सा पानी एकत्रित हो जाता था । वाराणसी व्यापार और विद्या का केन्द्र था। यहां के विद्यार्थी तक्षशिला विद्याध्ययन करने के लिए जाते थे । हुएनसांग के काल में यहां अनेक बौद्ध विहार और हिन्दू मंदिर मौजूद थे । जिनप्रभसूरि के समय वाराणसी देव-वाराणसी, राजधानीवाराणसी, मदन-वाराणसी ( मदनपुरा ) और विजय-वाराणसी नामक चार भागों में विभक्त थी । देव-वाराणसी में विश्वनाथ का मन्दिर था, और राजधानी- वाराणसी में यवन रहते थे । उस समय यहां दंतखात नाम का प्रसिद्ध सरोवर था और मणिकर्णिका घाट यहाँ के पवित्र पाँच घाटों में गिना जाता था, जहाँ ऋषिगण पंचाग्नि तप तपते थे । आचार्य हेमचन्द्र के समय काशी और वाराणसी में कोई अन्तर नहीं रह गया था । ४६८ ६ - कोशल अथवा कोशलपुर (अवध ) जैनसूत्रों का एक प्राचीन जनपद माना गया है। जैसे वैशाली में जन्म लेने के कारण महावोर कां वैशालिक कहा जाता था, उसी तरह ॠषभनाथ को कौशलिक ( कोसलिय ) कहा जाता था । अचल गणधर का यह जन्मस्थान था, और जोवन्तस्वामी- प्रतिमा यहाँ विद्यमान थी । कोशल का प्राचीन नाम विनीता था। कहते हैं कि यहाँ के निवासियों ने विविध कलाओं में कुशलता प्राप्त की थी, इसलिए लोग विनीता को कुशला नाम से १. डॉक्टर मोतीचन्दजी ने इसकी पहचान बानगंगा से की है, काशी का इतिहास, पृ० १० - ४ | २. ज्ञातृधर्मकथा ४, पृ० ६५; उत्तराध्ययनचूर्णी १३, पृ० २१५; आवश्यकचूर्णी, पृ० ५१६ । ३. बृहत्कल्पभाष्य ५.५८२४ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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