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परिशिष्ट १
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तोसलि (धौलि, कटक जिला ) भी जैन श्रमणों का केन्द्र था । महावीर ने यहां विहार किया था और उन्हें यहां अनेक कष्ट सहन करने पड़े थे । तोसलिक राजा यहां की जिनप्रतिमा की देखभाल किया करता था । तोसलि के निवासी फल-फूल के बहुत शौकीन थे । वर्षा के अभाव में नदियों के पानो से यहाँ खेती होती थी, कभी अत्यधिक वर्षा से फसल भो नष्ट हो जाती थी। ऐसा संकटकाल उपस्थित होने पर जैन श्रमणों को ताड़ के फल भक्षण कर गुजर करना पड़ता था । तोसलि में अनेक तालाब ( तालोदक ) थे । यहां की भैंसें बहुत मरखनी होती थीं; तोसलि आचार्य को अपने सींगों से उन्होंने मार डाला था ।"
शैलपुर तोसलि के हो अन्तर्गत था । ऋषिपाल नामक व्यंतर ने यहां ऋषितडाग (इसितडाग ) नाम का तालाब बनाया था, इसका उल्लेख पहले आ चुका है। यहां पर लोग आठ दिन तक संखडि मनाते थे । इस तालाब का उल्लेख हाथो गुंफा शिलालेख में मिलता है ।
भुवनेश्वर स्टेशन से लगभग चार मील पर उदयगिरि और खंडगिरि नामक प्राचीन पहाड़ियां हैं जिन्हें काट-काटकर सुन्दर गुफाएं बनायी गयी हैं । यहां लगभग सौ गुफाएं हैं जो मूर्तिकला की दृष्टि से बहुत महत्व को हैं । ये गुफाएं ईसवी सन् ५०० वर्ष पूर्व से लेकर ईसत्रो सन् ५०० तक की बतायी जाती हैं । सुप्रसिद्ध हाथीगुंफा यहीं पर है जिसमें सम्राट् खारवेल (१६९ ई० पू० ) का शिलालेख है । खारवेल ने मगध से जिनप्रतिमा लाकर यहां स्थापित की थी ।
मगध के राजा
५ - काशी (वाराणसी) मध्यदेश का प्राचीन जनपद था । काशी के वस्त्र और चंदन का उल्लेख बौद्ध जातकों में मिलता है। काशी को जीतने के लिए कोशल के राजा प्रसेनजित् और अजातशत्रु में युद्ध हुआ था, जिसमें अजातशत्रु की विजय हुई और काशो को मगध में मिला लिया गया। प्राचीन जैनसूत्रों में काशी और कोशल के अठारह गणराजाओं का उल्लेख मिलता है ।
१. आवश्यक नियुक्ति ५१० ।
२. व्यवहारभाष्य ६.११५ आदि ।
३. बृहत्कल्पभाष्य १.१२३६ विशेषचूर्णी ।
४. वही, १.१०६०-६१ ।
५. आचारांगचूर्णी, पृ० २४७ ।