________________
जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [परिशिष्ट १ की शाखा का उल्लेख मिलता है जिससे मालूम होता है कि जैन श्रमणों का यह केन्द्र रहा होगा। मोरियपुत्त तामलि का उल्लेख आता है जिसने मुंडित होकर पाणामा प्रव्रज्या स्वीकार की थी। मच्छरों का यहां बहुत प्रकोप था । हुएनसांग के समय इस नगर में बौद्धों के अनेक मठ मौजूद थे। ___इसके अतिरिक्त, बंगाल में पुण्ड्रवर्धन और कोमिल्ला भो जैनधर्म को प्रवृत्तियों के केन्द्र रहे हैं । पुण्डवद्धणिया जैन श्रमणों की एक शाखा रही है। यहां की गायें मरखनी होती थों और खाने के लिए उन्हें पौडे दिये जाते थे। हुएनसांग के समय यहां दिगम्बर निग्रन्थ रहा करते थे । पुण्ड्रवर्धन की पहचान बोगरा जिले के महास्थान प्रदेश से की जाती है।
खोमलिज्जिया (या कोमलीया) भो जैन श्रमणों की एक शाखा थो । इसको पहचान बंगाल के चटगाँव जिले के कोमिल्ला नामक स्थान से को जा सकती है।
४-कलिंग ( उड़ोसा) का नाम अंग और वंग के साथ आता है । उड़ीसा को ओड्र या उत्कल नाम से भी कहा जाता था।
जातक ग्रंथों के अनुसार दन्तपुर, महाभारत के अनुसार राजपुर, महावस्तु के अनुसार सिंहपुर, तथा जैनसूत्रों के अनुसार कांचनपुर कलिंग को राजधानी बतायी गयी है । तत्पश्चात् ईसवी सन् को सातवीं शताब्दी में कलिंगनगर भुनेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ और आज तक इसी नाम से चला आता है । कांचनपुर ( भुवनेश्वर ) जैन श्रमणों का विहारस्थल था । व्यापार का यह केन्द्र था और यहां के व्यापारी श्रीलंका तक जाते थे।
कलिंग जनपद का दूसरा महत्वपूर्ण स्थान था पुरो (जगन्नाथपुरी)। यहां जीवन्तस्वामी प्रतिमा होने का उल्लेख है। श्रावकों के यहां अनेक घर थे। ब्रजस्वामो ने यहां उत्तरापथ से आकर माहेसरी (माहिष्मती) के लिए प्रस्थान किया था। उस समय यहां का राजा बौद्ध धर्म का अनुयायो था।"
१. तन्दुलवैचारिकटीका, पृ० २६-अ । २. ओघनियुक्तिभाष्य ३० । ३. वसुदेवाहण्डी, पृ० १११ । ४. ओघनियुक्तिटोका ११९ । ५. आवश्यकनियुक्ति ७७३; आवश्यकचूर्णी, पृ० ३९६ ।