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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[ परिशिष्ट १
आरबक, रोमक, अलसन्द ( एलेक्जेण्ड्रिया ) और कच्छ के साथ आता है।
भागलपुर जिले को प्राचीन अंग माना जाता है ।
चम्पा अंगदेश की राजधानी थी; इसकी गणना भारत को दस राजधानियों में की गयी है । महाभारत में चम्पा का उल्लेख है; इसका दूसरा नाम मालिनी था । इसे सम्मेदशिखर आदि पवित्र तीर्थों के साथ गिना है । महावीर और उनके शिष्यों ने यहां विहार किया था | यह उपासकदशा और अन्तः कृदृशा नामक अंगों का, आर्यसुधर्मा ने अपने शिष्य आर्य जम्बू को प्रतिपादन किया था । व्याख्याप्रज्ञप्ति के कुछ भाग का विवेचन भी यहां किया गया था । शय्यंभव सूरि ने यहां दशवैकालिकसूत्र की रचना की थी । श्रेणिक की मृत्यु के पश्चात् कूणिक ( अजातशत्रु) को राजगृह में रहना अच्छा न लगा, इसलिए चम्पा को उसने राजधानी बनाया । राजा कूणिक का अपनी रानियों समेत भगवान महावीर के दर्शन के लिए जाने का सरस वर्णन औपपातिकसूत्र में मिलता है । दधिवाहन यहां का दूसरा उल्लेखनीय राजा हो गया है । उसकी कन्या वसुमती (चंदनबाला ) महावीर की प्रथम शिष्या थी, जो बहुत समय तक जैन श्रमणियों की अग्रणी रही ।
औपपातिकसूत्र में चम्पा नगरी का विस्तृत वर्णन किया गया है
यह नगरी समृद्धिशाली, भयवर्जित और धन-धान्य से भरपूर थी । यहां की प्रजा खुशहाल थी । सैकड़ों-हजारों हलों द्वारा यहां को जमीन की जुताई होती थी । ईख, जौ और धान की यहां बहुतायत से खेती होती थी । गाय, भैंस और भेड़ों की प्रचुर संख्या थी। गांव बहुत पास-पास थे । एक से एक सुन्दर चैत्य और वेश्याओं के सन्निवेश बने थे । नट, नर्तक, बाजीगर, मल्ल, मौष्टिक, कथावाचक, रौस-गायक, बाँस की नोक पर खड़े होकर तमाशा करने वाले, चित्रपट दिखाकर भिक्षा मांगनेवाले और वीणा वादक आदि लोगों का यह अड्डा था | यह नगरी उपद्रव - रहित थी, रिश्वतखोर, ठतरे, चोर, डाकू और शुल्कपालों का यहां अभाव था । पर्याप्त भिक्षा यहां मिलती थो । अनेक परिवार यहां विश्वासपूर्वक आराम से रहते थे | यह नगरी, आराम, उद्यान, सरोवर, बावड़ी आदि के कारण
१. जम्बूद्वीपप्रज्ञाति ५२, पृ० २१६ अ आवश्यकचूर्णी, पृ० १९१ ।