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________________ परिशिष्ट १ ४६३ व्यापार का बड़ा केद्र था, और यहां का माल सुवर्णभूमि ( बर्मा ) तक जाता था। नालंदा ( वर्तमान बड़ागांव ) राजगृह के उत्तर-पूर्व में अवस्थित था। बौद्धसूत्रों में राजगृह और नालंदा के बीच एक योजन का फासला बताया गया है। प्राचीन काल में नालंदा एक समृद्धिशाली नगर था, जो अनेक भवनों और उद्यानों से मंडित था। श्रमणों को यहां यथेच्छ भिक्षा मिलती थी। नालंदा के उत्तर-पश्चिम में सेसदविया नाम की एक उदकशाला (प्याऊ) थी जिसके उत्तर-पश्चिम में स्थित हस्तिद्वीप नामक उपवन में महावीर के प्रधान गणधर गौतम ने सूत्रकृतांग के अन्तर्गत नालंदीय अध्ययन की रचना की थी।' तेरहवीं शताब्दी में नालन्दा बौद्धविद्या का प्रमुख केंद्र था। देशविदेश से विद्यार्थी यहां विद्या-अध्ययन करने के लिए आते थे। चीनी यात्रा हुएनसांग ने यहीं आचार्य शोलभद्र के निकट विद्या-अध्ययन किया था। पावा अथवा मध्यम पावा ( पावापुरी) में महावीर का निर्वाण हुआ था । इस नगरी का विस्तार बारह योजन बताया गया है। यहां महावीर चातुर्मास व्यतीत करने के लिये हस्तिपाल नामक गणराजा की रज्जुगसभा में ठहरे । चौथा महीना लगभग आधा बीतने को आया । इस समय कार्तिकी अमावस्या के प्रातःकाल महावीर ने निर्वाण-लाभ किया। इस समय काशी-कौशल के नौ मल्ल और नौ लिच्छवि नामक अठारह गणराजा मौजूद ये । उन्होंने इस पुण्य अवसर पर सर्वत्र दीपक जलाकर महान् उत्सव मनाया। जिनप्रभसूरि के अनुसार, महावीर के निर्वाण-पद पाने के पूर्व यह नगरी अपापा कही जाती थी, बाद में इसका नाम पापा ( पावापुरी ) हो गया । २-अंग भी एक प्राचीन जनपद था । उन दिनों अंग मगध के हो आधीन था, इसलिए प्राचोन ग्रंथों में अंग-मगध का एकसाथ उल्लेख मिलता है । रामायण के अनुसार, यहां महादेव जी ने अंग ( कामदेव ) को भस्म किया था, अतएव इसका नाम अंग पड़ा। जैन आगमों में अंगलोक का उल्लेख सिंहल (श्रीलंका), बब्बर, किरात, यवनद्वीप, १. सूत्रकृतांग २,७.७०; स्थानांगटीका ९.३, पृ० ४३३-अ । २. कल्पसूत्र ५.१२८ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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