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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[ परिशिष्ट १
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क्रोड़ा के लिए आया करते थे । विपुल पहाड़ी अन्य सत्र पहाड़ियों से ऊँची थी; यहां से अनेक जैन श्रमणों को निर्वाण -प्राप्ति बताई है । भगवान् महावीर का यहां समवशरण आया था । वैभार पहाड़ी के नीचे तपोदा अथवा महातपोपतीरप्रभ' नामक गर्म पानी का एक विशाल कुण्ड था, जो आजकल भी राजगिर में मौजूद है और तपोवन के नाम से प्रसिद्ध है ।
महावीर ने राजगृह में अनेक चातुर्मास व्यतीत किये थे । जैनसूत्रों के अनुसार, यहां गुर्णासल, 3 मंडिकुच्छ और मोग्गरपाण आदि चैत्य विद्यमान थे; महावीर प्रायः गुणसिल ( वर्तमान गुणावा ) चैत्य में ठहरा करते थे ।
राजगृह बनिज व्यापार का बड़ा केंद्र था । दूर-दूर के व्यापारी यहां से माल खरीदने आते थे। यहां से तक्षशिला, प्रतिष्ठान, कपिलवस्तु, कुशोनारा आदि भारत के प्रसिद्ध नगरों को जाने के मार्ग बने थे । बौद्धसूत्रों में मगध के सुन्दर धान के खेतों का वर्णन किया गया है ।
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बुद्ध-निर्वाण के पश्चात् राजगृह की अवनति होती चली गयो । जब चीनी यात्री हुएनसांग यहां आया तो यह नगर शोभा - विहीन हो चुका था । चौदहवीं शताब्दी के जैन विद्वान् जिनप्रभसूरि के समय राजगृह में ३६ हजार गृह थे, जिनमें लगभग आधे बौद्धों के थे ।
पाटलिपुत्र ( पटना ) मगध की दूसरी राजधानी थी । इसे कुसुम - पुर, पुष्पपुर अथवा पुष्पभद्र नाम से भी कहा गया है । पाटलिपुत्र की गणना सिद्ध क्षेत्रों में की गयी है। जैन आगमों के उद्धार के लिए यहां जैन श्रमणों का प्रथम सम्मेलन हुआ था, जो पाटलिपुत्र वाचना के नाम से प्रसिद्ध है। इस नगर में आचार्य भद्रबाहु, आर्यमहागिरि, आर्य सुहस्ति, और वज्रस्वामी आदि ने विहार किया था । यह नगर
१. व्याख्याप्रज्ञप्ति २.५ पृ० १४१; बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति २.३४२९ ।
२. कल्पसूत्र ५.१२३; व्याख्याप्रज्ञप्ति ७.४; ५.९; २.५; आवश्यक नियुक्ति ४७३, ४९२,५१८ ।
३. ज्ञातृधर्मकथा २, पृ० ४७ दशाश्रुतस्कन्ध १०, पृ० ३६४; उपासकदशा ८, पृ० ६१ ।
४. व्याख्याप्रज्ञप्ति १५ ।
५. अन्तःकृद्दशा ६, पृ० ३१ ।
६. आवश्यकनिर्युक्ति १२७९ टीका; आवश्यकचूर्णी २, पृ० १५५ ।