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________________ परिशिष्ट १ ४६१ ब्राह्मणों ने मगध को पापभूमि बताते हुए वहां गमन करने का निषेध किया है । १८ वीं सदी के किसी जैन यात्री ने इस मान्यता पर व्यंग्य करते हुए लिखा है कासोवासी काग मुउइ मुगति लहइ । मगध मुओ नर खर हुई है । ' अर्थात्, अत्यन्त आश्चर्य है कि यदि काशी में कौआ भी मर जाये तो वह सीधा मोक्ष जाता है, लेकिन यदि कोई मनुष्य मगध में को प्राप्त हो तो उसे गधे की योनि में जन्म लेना पड़ता है ! आधुनिक पटना और गया जिलों को प्राचीन मगध कहा जाता है । मृत्यु मगध की राजधानी राजगृह ( आधुनिक राजगिर ) थी जिसकी गणना चम्पा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ति, साकेत, काम्पिल्यपुर, मिथिला और हस्तिनापुर नामक प्राचीन नगरियों के साथ की गयी है । मगध देश का प्रमुख नगर होने से राजगृह को मगधपुर कहा जाता था । जैन ग्रंथों में इसे क्षितिप्रतिष्ठित, चणकपुर, ऋषभपुर अथवा कुशाग्रपुर नाम से भी कहा गया है। कहते हैं कि कुशाग्रपुर में प्रायः आग लग जाया करती थी, अतएव मगध के राजा श्रेणिक (बिम्बसार ) ने उसके स्थान पर राजगृह बसाया । 3 महाभारत काल में राजगृह में राजा जरासंध राज्य करता था । पांच पहाड़ियों से घिरे रहने के कारण इसे गिरिव्रज कहते थे । जैन परम्परा में इन पहाड़ियों के नाम हैं - विपुल, रत्न, उदय, स्वर्ग और वैभार | ये पहाड़ियां आजकल भी राजगृह में मौजूद हैं और पवित्र मानी जाती हैं । इनमें वैभार और विपुल का जैन ग्रंथों में विशेष महत्व है । वैभार पहाड़ी को अत्यन्त मनोहर कहा है । यह पहाड़ी अनेक वृक्षों और लताओं से शोभित थी तथा नगर के नर-नारी यहां १. प्राचीन तीर्थमालासंग्रह, भाग १, पृ० ४ । २. निशीथसूत्र ९.१९; स्थानांग १०.७१८ | दीघनिकाय, महापरिनिब्बाणसुत्त में चम्पा, राजगृह, श्रावस्ति, साकेत, कौशाम्बी और वाराणसी का उल्लेख है । ३. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १५८ । ४. महाभारत (२.२१.२ ) में बैहार, वाराह, वृषभ, ऋषिगिरि और चैत्यक; तथा सुत्तनिपात की अट्ठकथा २, पृ० ३८२ में पंडव, गिज्झकूट, वेभार, इसगिलि और वेपुल्ल नाम मिलते हैं ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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