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परिशिष्ट १ जैन आगमों में भौगोलिक सामग्री
. पौराणिक भूगोल जैन भूगोल के अनुसार, मध्य लोक अनेक द्वोप और समुद्रों से परिपूर्ण है और ये द्वीप-समुद्र एक-दूसरे को घेरे हुए हैं। सबसे पहला जम्बूद्वीप (एशिया ) है जो हिमवन् (हिमालय ), महाहिमवन् , निषध, नील, रुक्मि और शिखरी-इन छह पर्वतों के कारण भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत नाम के सात क्षेत्रों में विभाजित है। उक्त छह पर्वतों से गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहितास्या, हरि, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, नारी, नरकान्ता, सुवर्णकूला, रूप्यकूला, रक्ता और रक्तोदा नाम को चौदह नदियां निकलती हैं।
भरत क्षेत्र ५२६६६ योजन विस्तार वाला है। यह क्षुद्र हिमवन्त के दक्षिण में तथा पूर्व और पश्चिम समुद्र के बीच अवस्थित है। भरत क्षेत्र के बीचों-बोच वैताढ्य पर्वत है। गंगा-सिंधु नदियों और वैताढ्य पर्वत के कारण यह क्षेत्र छह भागों में विभक्त है।' विदेह जिसे महाविदेह भी कहते हैं, पूर्वविदेह, अपरविदेह, देवकुरु और उत्तरकुरु नामक चार भागों में बँटा है। पूर्व विदेह का ब्रह्माण्डपुराण में भद्राश्व कहा है । इसमें सीता नदी ( चीन की सि-तो, जो काशगर की रेती में विलुप्त हो जाती है ) बहती है, जो नोल पर्वत से निकल कर पूर्व समुद्र में गिरती है। पूर्वविदेह और अपरविदेह अनेक विजयों में विभक्त हैं।
जम्बूद्वीप के बीचों-बीच सुमेरु पर्वत है। जम्बूद्वीप को घेरे हुए लवणसमुद्र (हिन्द महासागर) है। तत्पश्चात् धातकोखण्ड, कालोदसमुद्र पुष्करवर द्वीप आदि अनगिनत द्वीप और समुद्र है जो एक-दूसरे को वलय की भांति घेरे हुए हैं। पुष्करवर द्वीप के बीच में मानुषोत्तर
१. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति १-१०॥
२. बौद्धों ने इसे सिमेरु, मेरु, सुमेरु, हेममेरु और महामेरु नाम दिया है; यह सब पर्वतों से ऊँचा है । ब्राह्मण पुरागों में इसकी ऊँचाई एक लाख योजन बतायी है, बी० सी० लाहा, इण्डिया डिस्क्राइब्ड, पृ० २ आदि ।