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सिंहावलोकन सोमित था, इसलिए यही क्षेत्र आर्य क्षेत्र माना जाता था। इसके पश्चात् राजा सम्प्रति के काल से जैन श्रमणों के विहार-क्षेत्र में वृद्धि हुई तथा वे पश्चिम में सिन्धु-सौवीर और सौराष्ट्र, पूर्व में कलिंग, दक्षिण में द्रविड़, आंध्र, और कुग तथा पूर्वी पंजाब के कुछ भाग तक गमन करने लगे। महावीर ने लाढ (पश्चिमी बंगाल) नामक अनार्य देश में बिहार किया था । सामान्यतया जैनधर्म ने अपने समकालीन बौद्ध धर्म को भांति, खान-पान के प्रतिबन्ध के कारण, भारतवष को सीमा के बाहर कदम नहीं रक्खा । राजा उद्रायण को दीक्षित करने के लिए महावीर के चम्पा से सिन्धु-सौवीर गमन करने को बात बाद को जोड़ो हुई लगती है।
७-महावीर के समकालीन राजाओं में, श्रेणिक, कूणिक, प्रद्योत और उदयन आदि के नाम मुख्य हैं, लेकिन दुर्भाग्य से एव: । क छोड़कर उनके सम्बन्ध में विशेष जानकारी हमें नहीं मिलती। इसलिए इतिहास की दृष्टि से यह सामग्री विशेष उपयोगी नहीं कही जा सकती। महावीर लिच्छवी वंश में उत्पन्न हुए थे और गौतम बुद्ध की भांति अपने श्रमण संघ के नियमों का निर्माण करते समय लिच्छवी आदि गणों की तंत्रव्यवस्था से वे प्रभावित हुए थे। इस सम्बन्ध में यह भी ध्यान देने योग्य है कि उस काल के प्रमुख राजाओं को जैन और बौद्ध दोनों ने अपने-अपने धर्म का अनुयायी बताया है । इन लोगों ने महावीर अथवा बुद्ध के उपदेश से संसार का त्याग कर श्रमण दीक्षा स्वीकार की।