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सिंहावलोकन
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दूर-दूर की यात्रा करते थे । फिर भी सर्व साधारण की दशा बहुत अच्छी नहीं थी । वैसे खाने-पीने, पहनने ओढ़ने और अपनो साधारण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कोई कमी नहीं थी। खेतों में चावल और गन्ना खूब होता था । कपास की खेती होती थी और उससे भांति-भांति के वस्त्र तैयार किये जाते थे । वर्षा के अभाव में भयंकर दुष्काल पड़ते थे । फल-फूल काफी मात्रा में होते थे । पशुपालन का लोग ध्यान रखते थे और घी-दूध पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता था । शिल्पकला उन्नति पर थी । लुहार, कुम्हार, जुलाहे, रंगरेज और चर्मकार आदि अपने-अपने काम में व्यस्त रहते थे । उच्च वर्ग के लोग ऐश-आराम में डूबे रहते थे । वे ऊँचे-ऊँचे प्रासादों में निवास करते, अनेक स्त्रियों से विवाह करते सुगंधित उबटन लगाकर स्नान करते, बहुमूल्य वस्त्राभूषणों को धारण करते, भांति-भांति के स्वादिष्ट व्यंजनों का आस्वादन करते, मदिरापान करते और नौकर-चाकरों से घिरे रहते । मध्यम वर्ग के लोगों का जीवन भी सुखमय था । व्यापार आदि द्वारा वे धन का संचय करते तथा धर्म और संघ को दान देकर पुण्य का अर्जन करते । बनिज व्यापार उन्नति पर था । निम्न वर्ग की दशा सबसे दयनीय थी । दासों को आजीवन गुलामी करनी पड़ती। दुर्भिक्ष के कारण और साहूकारों का ऋण आदि न चुका सकने के कारण उन्हें दासवृत्ति स्वीकार करनी पड़ती । साधारण लोगों को आजीविका मुश्किल से हो चल पाती और शोषण की चक्की में पिस रहते |
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४- वर्ण व्यवस्था के कारण समाज चार वर्णों में बंटा हुआ था । कर्म और शिल्प में भी ऊंच और नीच का भेद आ गया था । समाज में ब्राह्मणों का स्थान सर्वोपरि था, यद्यपि जैनों ने क्षत्रियों को ऊंचा उठाने का भरसक प्रयत्न किया था। शूद्रों की हालत सबसे खराब थी । परिवार को समाज की इकाई समझा जाता था । संयुक्त परिवार की प्रथा थी जिसमें पिता को परिवार का मुखिया मानकर उसका आदर किया जाता था । पुत्र-जन्म का उत्सव बहुत ठाट से मनाया जाता था । स्त्रियों की स्थिति बहुत सन्तोषजनक नहीं कही जा सकती । यद्यपि जैनों ने पुरुषों के समकक्ष रखकर स्त्रियों को निर्वाण की अधिकारिणी कहा है, फिर भी सामान्यतया उनका दोषपूर्ण चित्रण ही अधिक है । बहुविवाह का चलन था । विवाह में दहेज की प्रथा थी । गणिकाओं का समाज में विशिष्ट स्थान था । परिव्राजिकाएं प्रेम-सन्देश के ले जाने