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४५० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज . [पांचवां खण्ड कोट्टार्या को बकरे की बलि चढ़ाया करती थी। जैन टीकाकारों ने आर्या और कोट्टकिरिया में अन्तर बताते हुए कहा है कि जो कूष्मांडिनी को भांति खड़ी रहती है वह आर्या है, और वही जब महिष का वध करने के लिए उद्यत हो जाती है, तो कोट्टकिरिया कहलाती है।
१. निशीथचूर्णी १३.४४०० ।
२. ज्ञातृधर्मकथाटीका ८, पृ० १३८-अ । दुर्गादेवी की अनेक रूपों में उपासना की जाती है। जब वह एक वर्ष की होती है तो सध्या के रूप में, दो वर्ष की होती है तो सरस्वती के रूप में, सात वर्ष की होर है तो चंडिका के रूप में, आठ वर्ष की होती है तो संभवी के रूप में, नौ वर्ष की होती है तो दुर्गा या बाला के रूप में, दस वर्ष की होती है तो गौरी के रूप में, तेरह वर्ष की होती है तो महालक्ष्मी के रूप में और जब सोलह वर्ष की होती है तो ललिता के रूप में उसकी उपासना की जाती है, गोपीनाथ, एलीमैंट्स ऑव हिन्दू इकोनोग्राफी, पृ० ३३२ आदि ।