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________________ पांचवां खण्ड ] दूसरा अध्याय : लौकिक देवी-देवता . ४४९ भूतों के साथ पिशाच भी जुड़े हुए हैं। पिशाच मांस का भक्षण करते और रुधिर का पान करते । ज्ञातृधर्मकथा में तालजंघ नामक एक पिशाच का वर्णन आता है जो उपद्रव करने के लिए समुद्र के व्यापारियों के समक्ष आकाश में उपस्थित हुआ था। देखने में वह काला स्याह था, लम्बे उसके ओठ थे, दांत बाहर निकले थे, युगल जिह्वाएं लपलपा रहीं थीं, गाल अन्दर को धंसे थे, चपटी नाक थी, कुटिल भौहें थीं, आंखों में लालो चमक रहो थी। उसका वक्षस्थल • और कुक्षि विशाल थी, तथा अट्टहास करता, नाचता और गर्जना करता हुआ, हाथ में तीक्ष्ण तलवार लिए वह आ रहा था। पिशाच प्रायः श्मशानों में रहते थे, लोग उन्हें अमावस्या के दिन बलि चढ़ाते थे । मल्ल योद्धा कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को श्मशान में जाकर उन्हें भोजन कराते, और यदि वहां से वे विजयो होकर लौट आते तो राजा उन्हें अपने यहाँ नियुक्त कर लेता था । आर्या और कोट्टकिरियामह आर्या और कोदृकिरिया दोनों दुर्गा के ही रूप हैं, जिसे चंडिका या चामुण्डा भी कहा गया है । युद्ध के लिए जाते समय लोग चामुण्डा को प्रणाम करते थे, तथा बकरे, भैंसे और पुरुष आदि का वधकर तथा पशुओं के सिर द्वारा याग आदि करके उसे प्रसन्न करते थे।" अपने जमाई की तीर्थयात्रा कुशलतापूर्वक सम्पन्न होने के लिये स्त्रियां मर्त्यपाताललक्षणं तस्यापणः हट्टः । पृथिवीत्रये यत् किमपि चेतनमचेतनं वा द्रव्यं सर्वस्यापि लोकस्य ग्रहणोपभोगक्षम विद्यते तत् आपणे न नास्ति; तथा आवश्यकटीका ( मलयगिरि ), पृ० ४१३ अ । १. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० ९९ । २. व्यवहारभाष्य १, पृ० ६२-अ आदि; उत्तराध्ययनटीका ८, पृ० ७४-अ। ३. ब्राह्मण पुराणों में दुर्गा को मद्यपायिनी और मांसभक्षिणी के रूप में चित्रित किया है। दुर्ग अथवा कष्टों से रक्षा करने के कारण उसे दुर्गा कहा जाता है । उसका चिह्न मयूरपिच्छ है तथा वह मुकुट और सर्प धारण करती है | उसके चार भुजाएँ और चार मुख हैं; वह धनुष, चक्र, पाश आदि शस्त्र धारण किये हैं। उसे कैटभनाशिनी और महिषसृप्रिया भी कहा जाता है, हॉपकिन्स, वही, पृ० २२४ ।। ४. पिंडनियुक्तिटीका ४४१ । ५. आचारांगचूर्णी, पृ० ६१; प्रश्नव्याकरण सूत्र ७, पृ० ३७ । २९ जै०
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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