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________________ ४४८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [पांचवां खण्ड प्रवंचना करता है, उसके सिर के वह सात टुकड़े कर डालता है । तथा जो उससे अच्छी तरह बोलता है, उसका अभिनंदन करता है और धूप, पुष्प आदि द्वारा उसकी अर्चना करता है; उसे वह समस्त रोगों से मुक्त कर देता है।" तोसरे भूतवादो ने कहा-"राजन , मेरे पास भी एक इसी प्रकार का भूत है, लेकिन उसका कोई अच्छा करे या बुरा, वह दर्शनमात्र से सब रोगियों का अच्छा कर देता है ।" राजा इस भूतवादी से प्रसन्न हुआ और उसने उसे अपने यहां रख लिया।' ____ इसके सिवाय, अनेक गारुड़िकों, भोगिकों (भोइय), भट्टों और चट्टों का उल्लेख आता है। कौशलराज की कन्या जब यक्षपूजा के लिए यक्षायतन में पहुँचो तो यक्षप्रतिमा की प्रदक्षिणा करते समय, वह यक्ष से आविष्ट हो गयो और कुछ-कुछ बकने लगी, तो राजा ने गारुड़िक, भोगिक, भट्टों और चट्टों को बुलाकर यंत्र, तंत्र और रक्षामंडल आदि से उसको चिकित्सा करायो । लोगों का भूत-प्रेतों में बहुत अधिक विश्वास था; उनका मानना था कि भूत दूकानों से खरीदे जा सकते हैं। कहते हैं कि कुत्तियावण (कुत्रिकापण ) से दुनिया भर की सारी वस्तुएं खरीदो जा सकतो थीं; भूत भो यहां मिलते थे । राजा प्रद्योत के समय उज्जैनी में इस प्रकार की नौ दूकानें थीं; राजगृह में भी थीं । एक बार भृगु. कच्छ का कोई वैश्य उज्जैनी को दूकान से भूत खरीदने आया । दूकानदार ने कहा, भूत मिल सकता है, लेकिन यदि उसे काम न दोगे तो वह तुम्हें मार डालेगा। वैश्य भूत खरीद कर चल दिया। वह उसे जो काम बताता, उसे वह तुरन्त कर डालता । आखिर में तंग आकर वैश्य ने एक खम्भा गड़वा दिया और उसपर उतरते. चढ़ते रहने को कहा । इस भूत ने भडोंच के उत्तर में भूततडाग नाम का एक तालाब बनाया। १. उत्तराध्ययनटीका १, पृ० ५। २. वही १२, पृ० १७४; तथा आवश्यकटीका ( हरिभद्र), पृ० ३९९-अ आदि । ___३. इसी प्रकार की कथा कथासरित्सागर, पेन्ज़र, जिल्द ३, अध्याय २८, पृ० ३२-३ में आती है। ४. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति ३.४२१४-२२। यहां कुत्रिकापण की बड़ी विचित्र व्युत्पत्ति दी गयी है-कुः इति पृथिव्याः संज्ञा, तस्याः त्रिकं कुत्रिक-स्वर्ग
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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