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पांचवां खण्ड ] दूसरा अध्याय : लौकिक देवी-देवता
४४७ के साथ सभा भी रहती थी जिसे गोबर से लोप-पोत कर साफ रक्खा जाता था।
भूतमह भूतों को निशाचर कहा गया है, जो यक्ष और राक्षस आदि के साथ गिरोह बनाकर निकलते थे। हिन्दू पुराणों में इन्हें भयंकर और मांसभक्षी कहा गया है । भूतों को बलि देकर प्रसन्न किया जाता है,
और बुद्धिमान मनुष्य सोने के पहले उनका स्मरण करते हैं। महाभारत में तीन प्रकार के भूतों का उल्लेख है :-उदासीन, प्रतिकूल और दयालू । रात्रि में भ्रमण करने वाले भूत प्रतिकूल कहे गये हैं। __ भूतमह की गणना महामहों में की गयी है। यक्षमह कार्तिकीपूर्णिमा को, और भूतमह चैत्र पूर्णिमा को मनाया जाता था। भूतग्रह से पीड़ित मनुष्यों को चिकित्सा भूतविद्या द्वारा की जाती थी, जिसके लिए शांति-कर्म तथा देव, असुर, गंधर्व, यक्ष, राक्षस आदि देवताओं को बलि चढ़ाई जाती थी। भूतविद्या में कुशल भूतवादियों का उल्लेख मिलता है। किसी राजा के दरबार में रोग का उपशमन करने के लिए तीन भूतवादी उपस्थित हुए | पहले ने कहा-"मेरे पास एक मन्त्रसिद्ध भूत है, जो सुन्दर रूप बनाकर गोपुर की गलियों में घूमता है, लेकिन किसी को उसकी ओर देखना नहीं चाहिए | जो उसकी ओर देखेगा उससे वह रुष्ट हो जायेगा और उसे मार डालेगा। तथा जो उसे देखकर नीचे की ओर मुंह कर लेगा वह रोग से मुक्त हो जायेगा।" दूसरे ने कहा-"मेरा भूत अत्यन्त ऐश्वर्य वाला है, लम्बा उसका उदर है, चपटी नाक है, कोख आगे को निकली है, वह पांच सिर वाला और एक पैरवाला है, शिखाराहत है, और बीभत्स उसका रूप है। वह अट्टहास करता हुआ, गाता और नाचता हुआ अपने विकृत रूप में भ्रमण करता है । उस समय जो क्रुद्ध होता है, हंसता है या
१. निशीथचूर्णी १.८०४ । दक्षिणापथ में ग्रामदेवकुलिकायें बनी रहती थीं। इनमें व्यतरों का निवास माना जाता था, आचारांगचूर्णी पृ० २६० ।
२. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६२ में उज्जैनी की रानी शिवा द्वारा भूतबलि दिये जाने का उल्लेख है।
३. हॉपकिन्स, वही, पृ० ३६ आदि । भूतों के शरीर की छाया नहीं पड़ती, वे हल्दी सहन नहीं कर सकते और हमेशा नाक से बोलते हैं, कथासरित्सागर १, परिशिष्ट १ । तया देखिए रोज़, वही, जिल्द १, पृ० २०५ आदि ।