SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 467
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४६ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [पांचवां खण्ड ने चैत्य को देवप्रतिमा या व्यंतरायतन के अर्थ में प्रयुक्त किया है। हेमचन्द्र आचार्य ने जिनसदन के अर्थ में इसका प्रयोग किया है। जान पड़ता है कि प्रत्येक नगर में चैत्य होते थे, जहाँ महावीर, बुद्ध तथा अन्य अनेक साधु-श्रमण ठहरा करते थे। चम्पा के पूर्णभद्र चैत्य का उल्लेख किया जा चुका है। राजगृह में गणसिलय और आमलकप्पा में अंबसालवन नामक चैत्य थे। चैत्य के स्थानों पर यक्षाधिष्ठित उद्यानों का भी उल्लेख आता है। उदाहरण के लिये, वाणियगाम में सुधर्म यक्षाविष्ठित दुईपलास (द्यतिपलाश), मथुरा में सुदर्शन यक्षाधिष्ठित भंडोर और वधमानपुर में मणिभद्र यक्षाधिष्ठित वर्धमान नामक उद्यान' थे | ये यक्षायतन कभी नगर के बाहर उद्यान में, कभी पर्वत पर, कभी तालाब के समीप, कभी नगर के द्वार के पास और कभी नगर के अन्दर हो होते थे। कतिपय चैत्यों का निर्माण स्थापत्यकला को दृष्टि से महत्वपूर्ण माना. जा सकता है। इनमें द्वार, कपाट और भवन आदि बने रहते थे। कोई देवकुलिका मनुष्य के एक हाथ-प्रमाण और पाषाण के एक खण्ड से बनायी गई थी। देवी-देवताओं की मूर्तियां प्रायः काष्ठ को बनी होती, तथा कुछ यक्षों की मूर्तियों के हाथ में लोहे की गदा रहती थी । चैत्य आदि, सितम्बर १९३८; कुमारस्वामी, यक्षाज़, पृ० १८; हॉपकिन्स, वही, पृ० ७०-७२। १. व्याख्याप्रज्ञप्ति १ उत्थान, पृ० ७ । बृहत्कल्पभाष्य १.१७७४ आदि में चार प्रकार के चैत्यों का उल्लेख हैं-साधर्मिक, मंगल, शाश्वत और भक्ति । खुद्दकपाठ की अट्ठकथा परमत्थजोतिका १, पृ० २२२ में तीन प्रकार के चैत्य बताये गये हैं-परिभोग चेतिय, उद्दिस्सक चेतिय और धातुक चेतिय । चूलवंस (३७.१८३ ) में मंगल चेतिय का उल्लेख है । तथा देखिए रोज़ ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स आदि, जिल्द १, पृ० १९५। २. अभिधानचिन्तामणि ४.६० । निशीथचूर्णी १२.४११९ में लोगसमवायठाणं आयतणं और पडिमागिहं चेतियं का उल्लेख है। ३. विपाकसूत्र २, पृ० १२। ४. वही ६, पृ० ३५ । ५. वही १०, पृ० ५६ । ६. उत्तराध्ययनटीका ९, पृ० १४२ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy