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________________ पांचवां खण्ड ] दूसरा अध्याय : लौकिक देवी-देवता वानमंतरियों में सालेज्जा महावीर भगवान् की भक्त थी, लेकिन कटपूतना ने उन्हें बहुत कष्ट पहुँचाया था।२ डाकिनियां और शाकिनियां भो उपद्रव मचाती रहती थीं। गोल्ल देश में रिवाज था कि डाकिनी के भय से रोगी को बाहर नहीं निकाला जाता था।3। गुह्यकों के विषय में लोगों का विश्वास था कि वे कैलाश पर्वत के रहने वाले हैं, और इस लोक में श्वानों के रूप में निवास करते हैं। कहते हैं कि देवों की भांति वे पृथ्वी का स्पर्श नहीं करते और उनकी पलक नहीं लगती।" यदि कभी कालगत होने के पश्चात् जैन साधु व्यंतर देव से अधिष्ठित हो जाता तो उसके मूत्र को बायें हाथ में लेकर उसके मृत शरीर को सींचा जाता, और गुह्यक का नामोच्चारण कर उससे संस्तारक से न उठने का अनुरोध किया जाता ।। यक्षायतन ( चैत्य ) प्राकृत और पालि ग्रन्थों में यक्ष के आयतन को चेइय अथवा चेतिय नाम से उल्लिखित किया है। महाभारत में किसी पवित्र वृक्ष को अथवा वेदिका वाले वृक्ष को चैत्य कहा है। देवी, यक्षों और राक्षसों आदि का निवास स्थान होने के कारण इसे हानि न पहुंचाने का यहां विधान है। रामायण में चैत्यगृह, चैत्यप्रासाद और चैत्यवृक्ष का उल्लेख है। याज्ञवल्क्यस्मृति के अनुसार, चैत्य को दो गावों या जनपदों के बीच का सोमास्थल माना जाता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में चैत्य को देवगृह कहा है, और इसलिए यहाँ चैत्यपूजा को मुख्यता दी गयी है। जैन आगमों के टोकाकार अभयदेवसरि १. आवश्यकचूर्णी, पृ० २९४ । २. वही, पृ० ४९० । तुलना कीजिए अयोधर जातक (५१०), ४, पृ० पृ० ८०-१, रामायण ५.२४ ।। ३. वृहत्कल्पभाष्य १.२३८० की चूर्णी, फुटनोट ३ । ४. निशीथभाष्य १३.४४२७ । ५. ओघनियुक्तिटीका, पृ० १५६-अ । तुलना कीजिए हॉपकिन्स वही, पृ० १४७ आदि । यहाँ कहा है-"गुह्यकों का संसार उन्हीं के लिए है जो वीरतापूर्वक तलवार से मृत्यु को प्राप्त हुए हैं।" तथा देखिए कथासरित्सागर १, परिशिष्ट १। ६. बृहत्कल्पभाध्य ४.५५२५ आदि । ७. वी० आर० दीक्षितार, इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टी, पृ० ४४०
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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