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________________ ૪૪૪ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ पांचवां खण्ड मरे हुए मनुष्यों की हड्डियों पर बनाया जाता था।' प्रश्न करने पर, घंटिक यक्ष उसका उत्तर कान में चुपके से फुसफुसाता था । 2 वनमंतर और क यक्ष के अलावा, वानमंतर, वानमंतरी और गुह्यकों आदि के उल्लेख भी मिलते हैं। अनेक अवसरों पर वानमंतरदेव को प्रसन्न करने के लिए सुबह, दुपहर और सन्ध्या के समय पटह बजाया जाता था । कभी गृहपत्नी के अपने पति द्वारा अपमानित होने पर, या पुत्रवती सपत्नी द्वारा सम्मान प्राप्त न करने पर, अथवा अतिशय रोगी रहने के कारण, अथवा किसी साधु से कोई झंझट हो जाने पर शान्ति के लिए वानमंतर की पूजा-उपासना की जाती थी; और वह रात्रि के समय जैन साधुओं को भोजन कराने से तृप्त होता था । नया मकान बनकर तैयार हो जाने पर भी वानमंतरों की आराधना की जाती थी । " कुंडलमेण्ठ वानमंतर को यात्रा भृगुकच्छ के आसपास के प्रदेश में की जाती थी । इस अवसर पर लोग संखडि मनाते थे । ऋषिपाल नामक वानमंतर ने तोसलि में ऋषितडाग (इसितडाग ) " नाम का एक तालाब बनवाया था, जहाँ प्रतिवर्ष आठ दिन तक उत्सव मनाया. जाता था ।' जैन सूत्रों में पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किंनर, किंपुरिष, महोरग और गन्धर्व' इन आठ व्यंतर देवों के आठ चैत्यवृक्षों का उल्लेख है - पिशाच का कदंब, यक्ष का वट, भूत का तुलसी, राक्षस का कांडक, किन्नर का अशोक, किंपुरुष का चम्पक, महोरग का नाग और गन्ध का तेंदुक ७ १. आवश्यकचूर्णी २, पृ० २२७ आदि । २. व्यवहारभाष्य ७.३१३; आवश्यकचूर्णी २, पृ० २२७; बृहत्कल्पभाष्य २.१३१२ । ३. दशवैकालिकचूर्णी, पृ० ४८ । ४. बृहत्कल्पभाष्य ४.४९६३ । ५. वही ३.४७६९ । ६. वही १.३१५० । ७. खारवेल के हाथीगुंफा शिलालेख में इसका उल्लेख हैं । ८. बृहत्कल्पभाष्य ३.४२२३ । ९. उत्तराध्ययनसूत्र ३६.२०७ । १०. स्थानांग ८.६५४ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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