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________________ पांचवा खण्ड] दूसरा अध्याय : लौकिक देवी-देवता ४४३ खुल गया।' गंडितिंदुक यक्ष का उल्लेख आ चुका है। वह कौशलराज की कन्या का उपभोग करता था। __ और भी अनेक यक्षों के उल्लेख मिलते हैं। भंडीर यक्ष को यात्रा का मथुरा में विशेष माहात्म्य माना जाता था। नर-नारी एकत्रित होकर यक्ष की यात्रा करने जाते थे। उन्होंने भंडोरवट, भंडीरावतंसक चैत्य, भंडोरावतंसक उद्यान और भंडीरवन आदि यक्ष के स्मारक बनवाये थे। मथुरा में जक्खगुहा ( यक्षगुहा) का उल्लेख है; यहाँ आर्यरक्षित ने विहार किया था ।४ सनत्कुमार और वैताठ्यवासी असिताक्ष नामक यक्ष के युद्ध होने का," तथा पोतनपुर में राजसिंहासन पर स्थापित वैश्रमण यक्ष को प्रतिमा का इन्द्र के वज्र से नष्ट होने का उल्लेख मिलता है। इसके सिवाय, अमोघदर्शी, श्वेतबद्ध, सोरिय, धरण, लेप्यक,१ णिद्धमण१२ आदि अनेक यक्षों के नाम मिलते हैं। . मनुष्यों को भाँति यक्षों में भी ऊँच-नीच जातियाँ मानो गयो हैं। आडंबर (अथवा हिरडिक) यक्ष मातंगों का और घण्टिक यक्ष डोबों का यक्ष माना जाता था। आडंबर यक्ष का आयतन हाल में १. उत्तराध्ययनचूर्णी, पृ० ८९ । २. आवश्यकचूर्णी, पृ० २८१ । ३. वृन्दावन का प्रसिद्ध न्यग्रोध वृक्ष भांडीर के नाम से ही विख्यात है, महाभारत ११.५३.८ । ४. अभिराजेन्द्रकोष, 'जक्खगुहा'। . ५. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २३७-अ । ६. वही, पृ० २४२ । ७. विपाकसूत्र ३, पृ० २० । ८. वही ५, पृ० ३२ । ९. वही ८, पृ० ४५ । १०. वही ९, पृ० ४९ । ११. आवश्यकचूर्णी पृ० ४६८ । १२. निशीथचूर्णी १०.३२०० । १३. मूलसर्वास्तिवाद के विनयवस्तु (पृ० १२ ) में गले में घण्टीवाले यक्ष का उल्लेख है, गिलगित मैनुस्क्रिप्ट्स, जिल्द ३, भाग २, तथा देखिए महाभारत ९.४६.५४ । -
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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