SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांचवां खण्ड ] दूसरा अध्याय : लौकिक देवी-देवता वाले), लासक ( भांड), आख्यायक (ज्योतिष), लंख, मंख, तूणइल्ल (तूणावत् = तूणा बजाने वाले), तुंबवोणिक ( तूंबा बजाने वाले), भोजक (भोज) और मागध (स्तुतिपाठक ) अपने खेल-तमाशे आदि दिखाते थे । यह चैत्य चंदन और गंध आदि से पूजनीय और.अर्चनीय था । चारों ओर से एक महान् वनखण्ड से यह परिवेष्टित था जिसमें भांति-भांति के वृक्ष और फल-फूल लगे थे। समिल्ल नामक नगर के बाह्य उद्यान में सभा से युक्त एक देवकुलिका में मणिभद्र यक्ष का आयतन था। एक बार इस नगर में शीतला का प्रकोप होने पर नागरिकों ने यक्ष की मनौती की कि उपद्रव शान्त होने पर वे अष्टमो आदि के दिन उद्यापनिका करेंगे । कुछ समय बाद रोग शान्त हो गया। देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण को वेतन देकर पूजा करने के लिए रख दिया गया, और वह अष्टमी आदि के दिन वहां की यक्ष-सभा को लीप-पोतकर साफ रखने लगा। ऐसे भो अनेक यक्षों के उल्लेख जैनसूत्रों में जाते हैं जो शुभ कार्यों में सहायक होते थे। महावोर भगवान् अपने विहार-काल में जब ध्यान में अवस्थित हो जाते तो बिभेलग यक्ष उनको रक्षा किया करता । अश्व रूपधारी सेलग (शैलक ) चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णमासी के दिन लोगों की सहायता करने के लिए उद्यत रहा करता था | चम्पा के जिनपालित और जिनरक्षित नाम के व्यापारियों की, रत्नद्वीप की देवी से रक्षा करने के लिए, उन्हें अपनी पीठ पर बैठा, उसने चम्पा में लाकर छोड़ दिया था। वाराणसी के तिंदुग उद्यान का गंडोतिंदुग यक्ष मातंग ऋषि का भक्त था और उक्त उद्यान में विहार करने पर यक्ष ने उनकी रक्षा की थी।" १. औपपातिकसूत्र २। २. पिण्डनियुक्ति २४५ आदि । ये लोग देवकुलिका में लगा हुआ मकड़ी का जाला आदि भी साफ करते थे, बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति १.१८१० । तथा देखिये कथासरित्सागर, जिल्द १, बुक २, अध्याय ८, पृ० १६२ (पेन्ज़र का अनुवाद)। ३. आवश्यकनियुक्ति ४८७ । ४. ज्ञातृधर्मकथा ९, पृ० १२७ । तुलना कीजिए वलाहस्स जातक (१९६), २, पृ० २९२। ५. उत्तराध्ययन १२ वां अध्याय, तथा टीका, पृ०. १७३-अ।।. ..
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy