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________________ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ पांचयां खण्ड सन्तानोत्पत्ति के लिए भी यक्ष की आराधना की जाती थी । धन्य सार्थवाह की पत्नी भद्रा के कोई सन्तान नहीं होती थी। धन्य की आज्ञा प्राप्त कर स्नान आदि से निवृत्त हो, वह राजगृह के बाहर नाग, भूत, यक्ष, इन्द्र और स्कंद आदि के देवकुल में आयी। उसने प्रतिमाओं का अभिषेक-पूजन किया और मनौती की कि यदि उसके सन्तान होगी तो वह देवताओं का दान आदि से आदर-सत्कार करेगो और अक्षयनिधि से उनका संवर्धन करेगी। तत्पश्चात् नाग, यक्ष आदि को उपयाचित करतो हुई वह काल यापन करने लगी। कुछ समय बीत जाने पर भद्रा को अभिलाषा पूर्ण हुई ।' गंगदत्ता के भी कोई सन्तान नहीं थी। वह वस्त्र, गंध, पुष्प और माला आदि लेकर, अपने मित्र और सगेसम्बन्धियों के साथ उंबरदत्त यक्ष के आयतन में पहुँची। मोरपंख की कंघी से उसने यक्ष की मूर्ति को साफ किया, जल से उसका अभिषेक किया, रूंएदार बल से उसे पोंछा और वस्त्र पहनाये। तत्पश्चात् पुष्प आदि से यक्ष की उपासना को और फिर सन्तान के लिए मनौतो करने लगो। सुभद्रा ने भो सुरंबर यक्ष के आयतन में पहुँचकर यक्ष को मनौती को कि यदि उसके पुत्र होगा तो वह सौं भैंसों को बलि चढ़ायेगी। __ सन्तान की अभिलाषा पूर्ण करने में हरिणेगमेषो का नाम खास कर लिया जाता है। मथुरा के जैन शिलालेखों में 'भगवा नेमेसो' कहकर उसका उल्लेख किया है। कल्पसूत्र में शक के आदेश से हरिणेगमेषी द्वारा महावीर के गर्भ परिवर्तन किये जाने का उल्लेख पहले आ चुका है। कल्पसूत्र की हस्तलिखित प्रतियों में उसके चित्र मिलते हैं । भदिलपुर के नाग गृहपति की पत्नी की आराधना से हरिणेगमेषो प्रसन्न हो गया। उसने सुलसा और कृष्ण की माता देवको को एक साथ गभवतो किया । दोनों ने साथ ही साथ प्रसव भो किया | सुलसा ने मृत पुत्रों को जन्म दिया और देवको ने जोवित पुत्रों को । लेकिन हरिणेगमेषो ने दोनों का गर्भ १. ज्ञातृधर्मकथा २, पृ० ४६ आदि; तथा आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६४ । २. विपाकसूत्र ७, पृ० ४२ आदि । तथा देखिए हथिपाल जातक (५०९), ४, पृ०६४-५ । ३. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १९३ । ४. वैदिक ग्रन्थों में नैगमेष को हरिण-शिरोधारक इन्द्र का सेनापति कहा है। महाभारत में उसे अजामुख बताया है, ए० के० कुमारस्वामी, यक्षाज, पृ० १२।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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