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________________ ४३८ . जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [पांचवां खण्ड देव, दानव, गंधर्व और किन्नर ब्रह्मचारियों को नमन करते हैं।' जैनसूत्रों में पूर्णभद्र, मणिभद्र, श्वेतभद्र, हरितभद्र, सुमनोभद्र, व्यतिपातिकभद्र, सुभद्र, सर्वतोभद्र, मनुष्ययक्ष, वनाधिपति, वनाहार, रूपयक्ष और यक्षोत्तम नाम के तेरह यक्ष गिनाये गये हैं। इनमें पूर्णभद्र और मणिभद्र का विशेष महत्व है। इन्हें निवेदनापिंड अर्पित किया जाता था । महावीर के समय इनके चैत्यों का उल्लेख मिलता है। चम्पा नगरी के उत्तर-पूर्व में स्थित पूर्णभद्र चैत्य का वर्णन औपपातिकसूत्र में किया गया है । यह चैत्य पुरातन काल से चला आ रहा था, पूर्व-पुरुषों द्वारा निरूपित था, अत्यन्त प्रसिद्ध था, आश्रित लोगों को वृत्ति देनेवाला था, तथा उसको शक्ति और सामर्थ्य सबको ज्ञात थे। यह चैत्य छत्र, ध्वजा, घंट और पताकातिपताका से मंडित था, लोममय (रूंएदार) प्रमार्जनी से युक्त था, यहां वेदिका बनी हुई थी, भूमि गोबर से लिपी रहती थी, भित्तियां खड़िया मिट्टी से पुती रहती थी, गोशोष और रक्त चंदन के पांच अंगुलियों के छापे लगे हुए थे, द्वारों पर चंदन-कलश रक्खे थे और तोरण बंधे हुए थे। पुष्पमालाओं के समूह यहां लटके हुए थे, पंचरंगे सुगंधित पुष्पों के ढेर लगे थे तथा अगर, कुंदरक और तुरुष्क (लोबान) की सुगंधित धूप महक रही थी। यहां नट, नतक, जल्ल (रस्सी पर खेल दिखानेवाले नट), मल्ल, मौष्टिक, वेलंधक (विदूषक ), प्लवक (तैराक ), कथक ( कथा कहने १. उत्तराध्यनसूत्र १६.१६ ।। २. अभिधानराजेन्द्रकोष, 'जक्ख' । ३. महामायूरी के अनुसार, पूर्णभद्र और मणिभद्र दोनों भाई थे, और वे ब्रह्मवती के प्रमुख देवता माने जाते थे, डाक्टर सिलवन लेवी के 'द. ज्योग्रफिकल कन्टैन्ट्स ऑव महाभारत' नामक लेख का डा. वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा यू० पी० हिस्टोरिकल सोसायटी, जिल्द १५, भाग २ में अनुवाद । महाभारत २.१०.१० में भी मणिभद्र का उल्लेख है। तथा देखिये संयुत्तनिकाय १.१०, पृ० २०९ । यक्षों में सबसे प्राचीन मूर्ति मणिभद्र ( प्रथम शताब्दी ई० पू०) की ही उपलब्ध हुई है। मत्स्यपुराण ( अध्याय १८० ) में पूर्णभद्र के पुत्र का नाम हरिकेश यक्ष बताया गया है। .. ४. निशीथचूणी ११.८१ की चूर्णी । . ५. आवश्यकचूर्णी, पृ० ३२० ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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