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________________ पांचवां खण्ड] दूसरा अध्याय : लौकिक देवी-देवता ४३७ एक महान् नागगृह' था जो अत्यन्त दिव्य और सत्य माना जाता था। एक बार रानी पद्मावती ने बड़ी धूमधाम से नागयज्ञ मनाने की तैयारी की। उसने मालो को बुलाकर पुष्पमण्डप को पंचरंगे पुष्पों और मालाओं से सजाने को कहा । हंस, मृग, मयूर, क्रौंच, सारस, चक. वाल, मदनशाल और कोकिल की चित्र-रचना से पुष्पमंडप शोभित किया गया। तत्पश्चात् स्नान करके, अपने सगे-सम्बन्धियों के साथ, धार्मिक यान में सवार हो, पद्मावती पुष्करिणी के पास पहुँची। वहां उसने स्नान किया और गोले वस्त्र पहने हुए कंमल-पत्र तोड़े, फिर नागगृह की ओर प्रस्थान किया। उसके पीछे-पोछे अनेक दासियां और चेटियां चल रही थी; पुष्पपटल और धूपपात्र उनके हाथ में थे । इस प्रकार बड़े ठाट से पद्मावती ने नागगृह में प्रवेश किया। लोमहस्तक से उसने प्रतिमा को झाड़ा-पोंछा, और धूप जलाकर नागदेव की पूजा को। नागकुमार धरणेन्द्र द्वारा जैनों के २३ वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को अर्चना किये जाने का उउलेख मिलता है। ___ यक्षमह प्राचीन भारत में यक्ष की पूजा का बहुत महत्व था, इसलिए प्रत्येक नगर में यक्षायतन बने रहते थे। जैन ग्रन्थों में उल्लेख है कि शोल का पालन करने से यक्ष की योनि में पैदा होते हैं," तथा यक्ष, डाक्टर फोगेल, वही, पृ० ४१ आदि, २२९; तथा देखिए रोज़, वही, जिल्द १, पृ० १४७ आदि । १. अर्थशास्त्र, ५.२.९०.४९, पृ० १७६ में सर्प की मूर्ति का उल्लेख है। २. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० ९५ आदि । ३. आचारांगनियुक्ति ३३५ टीका, पृ० ३८५ । मुचिलिन्द नाम के सर्पराज ने गौतम बुद्ध की वर्षा और हवा से रक्षा की थी, फोगल, वही, पृ० १०२-४, १२६ । ४. आजकल भी यक्षों को गांवों का रक्षक मानकर सभी जाति और धर्मा. नुयायियों द्वारा उनकी पूजा की जाती है। लोगों का विश्वास है कि ऐसा करने से गांव संक्रामक रोगों से सुरक्षित रह सकेगा, डिस्ट्रिक्ट गजेटियर आव मुंगेर, ५. उत्तराध्ययनसूत्र ३.१४ आदि । जयद्दिस जातक (५१३), ५ के अनुसार यशों की आँखें लाल रहती हैं, उनके पलक नहीं लगते, उनकी छाया नहीं पड़ती और वे किसी से डरते नहीं । यक्षों और गन्धों आदि के लिये देखिये दीघनिकाय ३,९, पृ० १५०।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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