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________________ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ पांचवां खण्ड स्कंदमह ब्राह्मणों को पौराणिक कथा के अनुसार, स्कंद अथवा कार्तिकेय' महादेवजी के पुत्र और युद्ध के देवता माने गये हैं । तारक राक्षस और देवताओं के युद्ध में स्कंद सेनापति बने थे । उनका वाहन मयूर माना गया है । स्कंदमह आसोज की पूर्णिमा को मनाया जाता था । भगवान् महावीर के समय स्कंद पूजा प्रचलित थी । महावीर जब श्रावस्तो पहुँचे तो अलंकारों से विभूषित स्कंदप्रतिमा को रथ को सवारी निकाली जा रही थी। ४३२ स्कंद और रुद्र की प्रतिमाएं काष्ठ की बनायो जाती थीं । कभी प्रदीपशाला में स्थापित की हुई स्कंद प्रतिमाओं के जल जाने का डर रहता था । कभी श्वान के द्वारा जलते हुए दोपक को हिला-डुला देने से या चूहे द्वारा जलती हुई बत्ती निकाल कर ले जाने से, आग लग जाने की आशंका रहती थी । ऐसी हालत में जैन साधु के लिए वसति में ही रहने का विधान है । यदि शुद्ध वसति न मिले तो यतनापूर्वक प्रदीपशाला में रहे । यदि प्रतिमा के जल जाने की आशंका हो तो उसे वहां से सरकाकर अन्यत्र स्थापित कर दे । यदि यह शक्य न हो तो स्तम्भ, कुड्य आदि पर लेप कर दे जिससे आर्द्रता के कारण प्रतिमा जल नहीं सके, अन्यथा दीपक को वहाँ से सरका दे | यदि कदाचित् श्रृंखलाबद्ध दीपक हो और उसे सरकाना संभव न हो तो दोपक की बत्तो को ऊपर-नीचे करते रहना चाहिए | कुत्ते, गाय आदि को वहां से सिसकारी मारकर या दण्ड आदि दिखाकर भगा देना चाहिए, या फिर बत्ती को कम कर देना चाहिए, या उसे निचोड़ कर उसका तेल निकाल डालना चाहिए । * १. महाभारत २.३५.४ में कुमार कार्तिकेय को रोहीतक ( रोहतक ) का मुख्य देवता माना गया है, तथा देखिए वही ९.४५ | महाराष्ट्र में खंडोबा नाम से इसकी पूजा आरती की जाती है। स्वामी रामदास की आरती में उसे हयवाहन, मणिमल्ल, पञ्चानन आदि विशेषणों से संबोधित किया है। देखिये रा० चि० ढेरे की मराठी पुस्तक 'खंडोबा' । २. हॉपकिन्स, वही, पृ० २२७ आदि । ३. आवश्यकचूर्णी, पृ० ३१५ । ४. वही, पृ० ११५ । ५. बृहत्कल्पभाष्य २.३४६५-७३ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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