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________________ पांचवां खण्ड] दूसरा अध्याय : लौकिक देवी-देवता ४३१ कांपिल्यतुर में इन्द्रमहोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। दुर्मुख राजा ने नागरिकों को इन्द्रकेतु' खड़ा करने का आदेश दिया । तत्पश्चात् मंगल वाद्यों के साथ श्वेत ध्वजपट और क्षुद्र घंटिकाओं से अलंकृत, श्रेष्ठ मालाओं से सुशोभित, मणिरत्नमाला से विभूषित तथा अनेक प्रकार के लटकते हुए फलों से समन्वित इन्द्रकेतु स्थापित किया गया । नर्तिकाएँ नृत्य करने लगों, कविगण काव्यपाठ करने लगे, जनसमूह आनन्द से नाचने लगा, ऐन्द्रजालिक दृष्टिमोहन आदि इन्द्रजाल दिखाने लगे, तांबोल बांटे गये, कुंकुम और कर्पूर-जल छिड़का जाने लगा, महादान दिये जाने लगे, और मृदंगों की ध्वनि सुनाई पड़ने लगी । इस प्रकार आमोद-प्रमोद में सात दिन व्यतीत हो गये । उसके बाद पूर्णिमा के दिन राजा दुर्मुख ने कुसुम और वस्त्र आदि द्वारा महा वैभव से गाजे-बाजे के साथ इन्द्रकेतु को पूजा की। _हेमपुर में भी इन्द्रमह मनाया जाता था। यहां इन्द्र-स्थान के चारों ओर नगर की पांच सौ कुल बालिकाएं एकत्रित हो, अपने सौभाग्य के लिए, बलि, पुष्प और धूप आदि से इन्द्र को पूजाउपासना करतीं। पोलासपुर में भी यह महोत्सव मनाया जाता था । इन्द्रमह आदि के उत्सवों पर बहुत अधिक शोरगुल और गड़बड़ी रहने से जैन साधुओं को स्वाध्याय को मनाई की गयी है । उत्सव के लिए तैयार किया हुआ जो मद्यपान आदि खाद्य पदार्थ बच जाता, उसे लोग प्रतिपदा के जिन उपयोग में लाते | उत्सव के दिनों में आमोदप्रमोद में उन्मत्त रहने के कारण जिन सगे-सम्बन्धियों को निमंत्रित नहीं किया जा सकता, उन्हें भी प्रतिपदा के दिन ही बुलाया जाता।" इन्द्रमह के दिन लोग धोबी के घर के धुले हुए स्वच्छ वस्त्र पहनते थे।' १. ज्ञातृधमकथा १, पृ० २५ में इन्दलहि ( इन्द्रयष्टि ) का उल्लेख है; तथा देखिए व्याख्याप्रज्ञप्ति ९.६ । तथा महाभारत ७.४९.१२। वज्रपाणि इन्द्रप्रतिमा का उल्लेख धम्मपद अट्ठकथा १, पृ० २८० में आता है। २. उत्तराध्ययनटीका ८, पृ० १३६ । ३. बृहत्कल्पभाष्य ४.५१५३ । ४. अन्तःकृद्दशा ६, पृ० ४० । ५. निशीथचूर्णी १९.६०६८ ।। ६. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १८१ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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