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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[ पांचवां खण्ड कल्पसूत्र के अनुसार इन्द्र अपनी आठ पटरानियों, तीन परिषदों, सात सैन्यों, सात सेनापतियों' और आत्मरक्षकों से परिवृत्त होकर स्वर्गिक सुख का उपभोग करता था । प्राचीन काल में इन्द्रमह सब उत्सवों में श्रेष्ठ माना जाता और लोग इसे बड़ी धूमधाम से मानते थे । निशीथसूत्र में इन्द्र, स्कंद, यक्ष और भूत नामक महामहों का उल्लेख है जो क्रम से आषाढ़,' आसोज, कार्तिक और चैत्र की पूर्णिमाओं के दिन मनाये जाते थे जब कि लोग खूब खाते, पीते, नाचते और गाते हुए आमोद-प्रमोद करते थे । "
ने इन्द्र से स्वर्गलोग चलने की प्रार्थना की लेकिन इन्द्र ने कहा, ऐसा करने से मुझे ब्रह्मवध्या लग जायगी । इस पर ब्रह्मवध्या को चार हिस्सों में बाँट दिया गया— स्त्रियों के ऋतुकाल में, जल में लघुशंका करने में, सुरापान में और गुरुपत्नी के साथ सहवास में । उसके बाद इन्द्र को स्वर्गलोक में जाने की आज्ञा मिल गयी । तथा देखिए महाभारत वनपर्व २४० - २०७ ।
१. हरिणेगमेषां को इन्द्र की पदाति सेना का एक सेनापति ( पादातानीकाधिपति ) बताया गया है । इसी ने महावीर के गर्भ का परिवर्तन किया था, कल्पसूत्र २.२६ । अन्तःकृद्दशा ३, पृ० १२ में भी हरिणेगमेषी का उल्लेख है । सन्तोत्ति के लिए लोग उसकी मनौती करते थे ।
२. १.१३ ।
३. जैन परम्परा के अनुसार, भरत चक्रवर्ती के समय से इन्द्रमह का आरम्भ माना जाता है । कहते हैं कि इन्द्र ने आभूषणों से अलंकृत अपनी उँगली भरत को दी और उसे लेकर भरत ने आठ दिन तक उत्सव मनाया, आवश्यकचूर्णी, पृ० २१३ | देखिए हॉपकिन्स, वही, पृ० १२५ । भास ने भी इन्द्रमह का उल्लेख किया है, पुसालकर, भास: ए स्टडी, अध्याय १९, पृ० ४४० आदि; तथा कथासरित्सागर, जिल्द ८, पृ० १४४ - ५३ ; महाभारत १.६४.३३; तथा वासुदेवशरण अग्रवाल, रंगस्वामी ऐयंगर कमैमोरेशन वॉल्यूम, पृ० ४८० आदि में लेख ।
४. लाट देश में यह उत्सव श्रावण की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता था, निशीथ १९.६०६५ की चूर्णी । रामायण ४.१६.३६ के अनुसार, गौड़ देश में इसे आसोज की पूर्णिमा को मनाते थे । वर्षा के बाद जब रास्ते स्वच्छ हो जाते और पूर्णिमा के दिन युद्ध के योग्य समझे जाने लगते, तब इस उत्सव की धूम मचती थी, हॉपकिन्स, वही, पृ० १२५ आदि ।
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५. निशीथसूत्र १९.११-१२ तथा भाष्य ।