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दूसरा अध्याय
लौकिक देवी-देवता धर्म, तत्व रूप में मस्तिष्क की बौद्धिक मनोवृत्ति की अपेक्षा सहज ज्ञान और मनोवेग के ऊपर अधिक आधारित है। धर्म की सहायता से ही मनुष्य ने किसो निरन्तर विद्यमान कर्तृत्व-जिसे वह विश्व का नियामक समझता था-के अस्तित्व की कल्पना करके प्राकृतिक शक्तियों
और विश्व के तथ्यों को प्रतिपादन करने का प्रयत्न किया । इस प्रकार विश्व के नियामक समझे जाने वाले अनेक देवी-देवता और पुरातन पवित्र आत्माओं का प्रादुर्भाव हुआ।
देवी-देवताओं का अस्तित्व भारत में अत्यन्त प्राचीन काल से चला आता है। जैनसूत्रों में इन्द्र, स्कंद, रुद्र, मुकुंद, शिव, वैश्रमण, नाग, यक्ष, भूत, आर्या और कोट्टकिरिया मह का उल्लेख किया गया है।
इन्द्रमह इन्द्र वैदिक साहित्य में अत्यन्त प्राचीन देवता माना गया है। वह समस्त देवताओं में अग्रणी था। इन्द्र को परस्त्रीगामी बताया है।'
१. पाणिनी के काल में लोग देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाकर अपनी आजीविका चलाते थे, गोपीनाथ, एलीमेंट्स ऑव हिन्दू इकोनोग्राफी, भूमिका ।
२. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० १००; व्याख्याप्रज्ञप्ति ३.१ । निशीथसूत्र ८.१४ में इन्द्र, स्कन्द, रुद्र, मुकुन्द, भूत, यक्ष, नाग, स्तूप, चैत्य, वृक्ष, गिरि, दरि, अगड, तडाग, हृद, नदो, सर, सागर और आकर मह का उल्लेख है। ।
३. देखिए हापकिन्स, इपिक माइथोलोजी, पृ० १३५ । तुलना कीजिए बृहत्कल्पभाष्य १.१८५६-५९। कहते हैं, एक बार इन्द्र उडंक ऋषि की रूपवती पत्नी को देखकर मोहित हो गया । ऋषि ने उसे शाप दिया जिससे वह ब्रह्मवध्या का पातकी कहलाया । इन्द्र डरकर कुरुक्षेत्र में चला गया। ब्रह्मवध्या भी कुरुक्षेत्र के आसपास चक्कर काटने लगी। उधर इन्द्र के बिना स्वर्ग शून्य हो गया । यह देखकर देवगण इन्द्र को स्वर्गलोक में ले चलने के लिए कुरुक्षेत्र पहुँचे । देवों