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________________ ४२८ , जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज . [पांचवां खण्ड कोई विकाल में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति मानते हैं। कुछ लोग अरण्य में, झोंपड़ियों में अथवा ग्राम के समीप निवास करते थे । वे प्राणिहिंसा को पाप नहीं मानते थे। उनकी मान्यता थी-"मैं ब्राह्मण हूं, अतएव हन्तव्य नहीं हूं, केवल शुद्र आदि ही हन्तव्य हैं । शुद्र को हत्या करके प्राणायाम कर लेना पर्याप्त है। बिना हड्डी वाले गाड़ी-भरे क्षुद्र जीवों को मारकर यदि ब्राह्मण को भोजन करा दें तो इतना प्रायश्चित बस है।" ___ अजिनसिद्ध ऋषि ऋषिभाषित में नारद, असितदेवल, वल्कलचीरो, अंगरिसि भारद्वाज, कुम्मापुत्त, मंखलिपुत्त, जण्णवक (याज्ञवल्क्य), बाहुक, गद्दभाल, रामगुत्त, अम्मड, वारत्तय, अद्दय, नारायण, द्वोपायन आदि ऋषियों के उल्लेख मिलते हैं। इनमें बहुत-सों को अजिनसिद्ध स्वीकार किया गया है। १. सूत्रकृतांगटीका ७, पृ० १५८-६० । २. वही २, पृ० ३१४ । ३. उद्दक रामपुत्त का उल्लेख महावग्ग १, ६.१०, पृ० १० में मिलता है, तथा देखिये वही ६.२३.४२, पृ० २५९ । ४. तथा देखिए सूत्रकृतांग ३-४-२, ३, ४, पृ० ९४-अ आदि; चतुःशरणटीका ६४ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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