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________________ पांचवां खण्ड] पहला अध्याय : श्रमण सम्प्रदाय ४२७ ___ वारिखल परिव्राजक अपने पात्रों को बारह बार मिट्टी लगाकर, और वानप्रस्थ (तापस ) छह बार मिट्टी लगाकर साफ करते थे।' चक्रचर भिक्षा के लिए बंहगो (सिक्कक) लेकर, और कर्मकार भिक्षु देवद्रोणी लेकर चलते थे। तत्पश्चात् कुशोल साधुओं में गौतम, गोव्रतिक, चंडीदेवग (चंडी का भक्त; चक्रधरप्रायाः-टोका), वारिभद्रक (जल का पान और शैवाल का भक्षण करने वाले, तथा नित्य स्नान करने वाले और बार-बार पैर धोने वाले । ये लोग शीत उदक के सेवन से मोक्ष मानते हैं), अग्निहोत्रवादो ( अग्निहोम से स्वर्ग गमन के अभिलाषी), और भागवत (जल से शुद्धि मानने वाले ) आदि को गिना गया है। पिंडोलग साधु बहुत गंदे रहते थे। उनके शरीर से दुर्गन्ध आती और उनके बालों में जूंएं चला करतीं। राजगृह का कोई पिंडोलग वैभार पर्वत पर शिला के नीचे दबकर मर गया था। कूर्चक साधु दाढ़ी-मूछ बढ़ा लेते थे। कूर्चक साधुओं का अस्थिसरजस्क और दगसोगरिय साधुओं के साथ उल्लेख किया गया है । अस्थिसरजस्क ( कापालिक ), सौगत ( भिक्षुक ), दगसोगरिय ( शुचिवादी), कूर्चन्धर तथा वेश्याओं के घर से वस्त्र ग्रहण करने का जैन साधुओं को निषेध है। ___ इसके सिवाय, अन्य अनेक तपस्वियों और साधुओं का उल्लेख मिलता है। कोई नमक के छोड़ने से, कोई लहसुन, प्याज, ऊंटनी का दूध, गोमांस और मद्य इन पांच वस्तुओं के त्याग करने से, तथा १.बृहत्कल्पभाष्य १.१७३८ । २. वही वृत्ति १.८८६ । ३. वही ३,४३२१ । ४. सूत्रकृतांग ७, पृ० १५४ । ५. सूत्रकृतांगचूर्णी, पृ० १४४ । ६. उत्तराध्ययनचूर्णी पृ० १३८ । पिंडोलग को एक अत्यन्त प्रतिष्ठित बौद्ध साधु माना गया है, मातंगजातक (४६७), ४, पृ० ५८३; सुत्तनिपात की अटकथा २, पृ० ५१४ आदि; चूलवग्ग ५.५.१०, पृ० १६६ । ___७. बृहत्कल्पभाष्य १.२८२२ । पंडित नाथूराम प्रेमी के अनुसार, कूर्चक साधु दिगम्बर जैनसम्प्रदाय के थे, अनेकांत, अगस्त-सितम्बर, १९४४ । ८. निशीथभाष्य १५.५०७९ । ९. बृहत्कल्पभाष्य १.२८२२ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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