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________________ पांचवां खण्ड ] दूसस अध्याय : लौकिक देवी-देवता - रुद्र मह ___ हिन्दू पुराणों में ग्यारह रुद्र माने गये हैं । वे इन्द्र के साथी, शिव और उसके पुत्र के अनुचर तथा यम के रक्षक बताये गये हैं।' रुद्रायतन का उल्लेख आडम्बर यक्ष (हिरिमिक्ख अथवा हिरडिक) और चामुण्डा (मातृ ) के आयतन के साथ किया गया है । इन आयतनों के नोचे मनुष्य की ताजी हड्डियाँ गाड़ी जाती थीं। स्कन्द की प्रतिमा को भाँति रुद्र की प्रतिमा भी काष्ठ से बनायी जाती थी। . मुकुन्दमह महाभारत में मुकुन्द अथवा बलदेव को लांगूली अथवा हलधर कहा है। हल उसका अस्त्र है। उसके गले में सों की माला पड़ी हुई है और उसकी ध्वजा में तीन सिरों के निशान हैं। बलदेव की हस्तरेखा से उसका मद्यप्रेम व्यक्त होता है। भगवान महावीर के काल में मुकुन्द और वासुदेव को पूजा प्रचलित थो । महावीर जब गोशाल के साथ विहार करते हुए आवत्त ग्राम पहुँचे तो वहाँ बलदेवगृहमें, हाथ में हल ( नंगल) लिए हुए बलदेव को प्रतिमा विराजमान थी। मद्दणा गाँव में भी बलदेव की प्रतिमा मौजूद थी । शिवमहें हिन्दू पुराणों में शिव अथवा महाशिव भूतों के अधिपति, कामदेव १. हॉपकिन्स, वही, पृ० १७३ । रुद्र-शिवकी कल्पना के विकास के लिए देखिए भांडारकर, वैष्णविज्म, शैविम एण्ड माइनर रिलिजियस सिस्टम, पृ० १०२ आदि । २. व्यवहारभाष्य ७.३१३, पृ० ५५ अ । ३. हॉपकिन्स, कही, पृ० २१२ । ४. आवश्यक नियुक्ति ४८१; आवश्यकचूर्गी, पृ० २९४ । ५. पत्थर के कतिपय शिवलिंग सिंधुघाटी में मिले हैं जिससे पता लगता है * कि प्राचीन काल में भी किंम-पूजा प्रचलित थी। प्रजिलुस्की ने अपने 'नॉन-आर्यन लोन्स इन इण्डो-आर्यन' नामक लेख में बताया है कि लंगूल (हल) और लिंग ये दोनों शब्द आस्ट्री-एशियायी हैं और व्युत्पत्ति की दृष्टि से दोनों का अर्थ एक है । ऋग्वेद में लिंगपूजकों के लिए निन्दावाची शब्दों का प्रयोग है, इससे पता लगता है कि लिंग-पूना की उत्पत्ति आर्यों से हुई है, प्री-आर्यन ऐलीमैंट्स इन इण्डियन कल्चर; अतुल के० सुर, द कलकत्ता रिव्यू , नवम्बर २८ जै०भा०
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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