________________
४२० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [पांचवां खण्ड
गोशाल निमित्तशास्त्र के बहुत बड़े पंडित थे। इस मत के अनुयायो साधु उग्रतप, घोर तप, घृतादि-रसपरित्याग और जिह्वेन्द्रिय-प्रतिसंलीनता नामक चार कठोर तपों का आचरण करते थे। ये लोग जोवहिंसा से विरक्त रहते, तथा मद्य, मांस, कंदमूल आदि तथा उद्दिष्ट भोजन के त्यागो होते थे ।' दशाश्रुतस्कंधचूर्णी में उन्हें भारिय गोसाल (गुरु को अवहेलना करने वाला ) कहा गया है। __ अनेक प्रकार के आजोविक साधुओं का उल्लेख किया गया है। वहुत से दो घर छोड़कर, तोन घर छोड़कर अथवा सात घर छोड़कर भिक्षा ग्रहण करते थे। कुछ केवल कमल की डंठल खाकर ही निर्वाह करते, कुछ प्रत्येक घर से भिक्षा ग्रहण करते, और कुछ बिजली गिरने पर उस दिन भिक्षा ग्रहण नहीं करते थे। कतिपय साधु उष्ट्रिका नाम मिट्टी के मटके में प्रविष्ट होकर तप करते थे।
आजीविक मत के १२ उपासकों में ताल, तालप्रलंब, उद्विध, संविध, अवविध, उदय, नामोदय, नर्मोदय, अनुपालक, शंखपालक, अयंपुल और कायरत नाम गिनाये गये हैं । ये उपासक गोशाल को अपना देव ( अर्हत ) मानते थे, माता-पिता की सेवा करते थे तथा उदुंबर, बड़, बेर, सतर (शतरी पोपल) और पोपल इन पांच उदंबर फलों तथा प्याज, लहसुन और कंदमूल का भक्षण नहीं करते थे । वे बिना बधिया किये हुए और बिना नाक बिंधे बैलों से आजीविका करते तथा पन्द्रह प्रकार के कर्मादानों से विरक्त रहते थे। पोलासपुर का प्रसिद्ध कुम्हार सद्दालपुत्त और श्रावस्ती को हालाहला नाम की कुम्हारी -
१. देखिए ऊपर, पृ० १६ । २. जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, १० २४७ ।
३. औपपातिक ४१, पृ० १६६ । . ४. व्याख्याप्रज्ञप्ति ७.१०, पृ० ३२३ में अन्य उपासकों के साथ उदय, नामोदय, नर्मोदय, अनुपालक, ( अन्नपालय ) और शंखपालक का उल्लेख है। अयंपुल का नाम १५वे शतक में आता है।
५. बड़, पीपल, गूलर, पिलखन और काकोदुंबरी इन पाँच वृक्षों के फल, पाइयसद्दमहण्णवो।
६. व्याख्याप्रज्ञप्ति ८.५, पृ० ३६९-अ। ७. उपासकदशा ७। ८. व्याख्याप्रज्ञप्ति १५।