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________________ ४१८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [पांचवां खण्ड .. अन्य भी अनेक परिव्राजकों के उल्लेख जैनसूत्रों में पाये जाते हैं। कात्यायनगोत्रीय आर्य स्कंदक श्रावस्ती के गहभाल के प्रमुख शिष्य थे। ये वेद-वेदांग के बड़े पंडित थे। एक बार इन्होंने भगवान् महावीर के दर्शनार्थ जाने का विचार किया। पहले वे परिव्राजकों के मठ में गये, वहां से त्रिदंड, कुंडिका' (कमण्डलु), रुद्राक्ष की माला (कंचणिया), मिट्टी का कपाल (करोटिका), आसन (भिसिया), साफ करने का वस्त्र ( केसरिया), तिपाई (छन्नालिया), आंकड़ी ( अंकुशकवृक्ष के पत्ते तोड़ने के लिए ), तांबे की अंगूठी (पवित्तय ), और कलाई का आभरण (कलाचिका) लेकर, गेरुए वस्त्र धारण किये, छतरी लगाई और जूते पहनकर चल पड़े।२।। ___ शुक नाम के एक दूसरे परिव्राजक का उल्लेख आता है। वह चार वेद, षष्ठितंत्र और सांख्यदर्शन का पंडित था। पांच यमों और पांच नियमों से युक्त वह दस प्रकार के परिव्राजक धर्म, तथा दानधर्म, शौचधर्म और तीर्थाभिषेक का उपदेश करता हुआ, गेरुए वस्त्र पहन, त्रिदंड, कुंडिका आदि लेकर, पांच सौ परिव्राजकों के साथ सौगन्धिया नगरी के मठ में उतरा। यहां वह सांख्य सिद्धान्त के अनुसार आत्मा का चिंतन करता हुआ समय यापन करने लगा। शौचमूल धर्म का प्रतिपादन करते हुए उसने बताया कि द्रव्यशौच जल और मिट्टी से, तथा भावशौच दर्भ और मंत्रों से होता है। इसलिए कोई भी अपवित्र वस्तु ताजो मिट्टी से मांजने और शुद्ध जल से धोने से पवित्र हो जाती है, तथा जल के अभिषेक से पवित्र होकर प्राणियों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। अम्मड परिव्राजक और उसके सात शिष्यों का उल्लेख किया गया है। अम्मड कांपिल्यपुर में सौ घरों से भिक्षा और सौ घरों में वसति प्राप्त करता था। प्रकृति से वह अत्यंत विनीत और भद्र था, १. अपने त्रिदंड में कुण्डिका स्थापन कर परिव्राजक द्वारा प्रश्न पूछने का उल्लेख मिलता है, बृहत्कल्पभाष्यपीठिका ३७४ । २. व्याख्याप्रज्ञप्ति २.१, पृ० ११३ । तथा देखिए उत्तराध्ययनटीका ४, पृ० ८६-अ। ३. ज्ञातृधर्मकथा ५, पृ० ७३ आदि। ४. दीघनिकाय के अम्बसुत्त में अम्बठ्ठ नाम के एक विद्वान् ब्राह्मण का उल्लेख है। महावीर भगवान् अम्बट को धर्म में स्थिर करने के लिए राजगृह गये थे, निशीथचूर्णीपीठिका, पृ० २० ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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