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________________ पांचवां खण्ड ] पहला अध्याय : श्रमण सम्प्रदाय ४१७ अथवा जो खाते हुए चलते हैं), चीरिक (मार्ग में पड़े हुए वस्त्र को धारण करने वाले अथवा वस्त्रमय उपकरण रखने वाले ), चर्मखंडिक (चर्म ओढ़ने वाले अथवा चर्म के उपकरण रखने वाले), भिच्छंड (भिक्षोण्ड - केवल भिक्षा से ही निर्वाह करने वाले, गोदुग्ध आदि से नहीं । कोई सुगतशासन के अनुयायी को भिक्षोण्ड कहते हैं) और पंडुरंग' (जिनका शरीर भस्म से लिप्त हो ) आदि परिव्राजकों का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त, संखा ( सांख्य ), जोइ (योगी), कपिल (निरीश्वर सांख्य ), भिउच्च (भृगु ऋषि के शिष्य ), हंस (पर्वत को गुफाओं, रास्तों, आश्रमों, देवकुलों और आरामों में रहने वाले केवल भिक्षा के लिए गांव में प्रवेश करने वाले), परमहंस ( नदीतट या नदो के संगमों पर वास करने वाले, और अन्त समय में चोर, कौपीन ओर कुश का त्याग करने वाले), बहूदग (एक रात गांव में और पांच रात नगर में रहने वाले ) कुडिव्वय (कुटिव्रत = घर में रहकर हो क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पर विजय प्राप्त करने वाले), और कण्हपरिव्वायग ( कृष्णपरिव्राजक = नारायण के भक्त ) का उल्लेख है। तत्पश्चात् करकंड (डु), अंबड, द्वीपायन, पराशर," नारद आदि की ब्राह्मण परिव्राजकों, और नग्गई (नग्नजित् ), विदेह आदि की क्षत्रिय परिव्राजकों में गणना को गयी है। १. निशीथ १३.४४२० की चूर्णी के अनुसार, गोशाल के शिष्यों को पंडरभिक्खु कहा गया है; २.१०८५ की चूर्णी में भी उल्लेख है। अनुयोगद्वारचूर्णी ( पृ० १२ ) में उन्हें ससरक्ख भिक्खुओं का पर्यायवाची माना है। २. अनुयोगद्वारसूत्र २०; शातृधर्मकथाटोका १५ । ३. हंस, परमहंस आदि के लिए देखिए हरिभद्र, षड्दर्शनसमुच्चय, पृ० ८-अ; एच० एच० विल्सन, रिलीजन्स ऑव द हिन्दूज़, जिल्द १, पृ०. २३१ आदि । ४. औपपातिकसूत्र ३८, पृ० १७२ । ५. द्वीपायन और पराशर को शीत उदक और बीजरहित आदि के उपभोग से सिद्ध माना गया है, सूत्रकृतांग ३.४.२, ३, ४, पृ० ९४ अ-६५ । द्वीपायन परिव्राजक की कथा उत्तराध्ययनटीका २ पृ० ३९ में आती है । इस के अनुसार, द्वीपायन का पूर्व नाम पराशर था । ६. औपपातिकसूत्र पृ० १७२-१७६ । २७ जै०भा०
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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