________________
४१५
पांचवां खण्ड ] पहला अध्याय : श्रमण सम्प्रदाय रहने वाले ), जलवासी ( जल में निमग्न होकर बैठे रहने वाले ), वेलवासी ( समुद्र तट पर रहने वाले ), रुक्खमूलिअ (वृक्षों के नीचे रहने वाले ), अंबुभक्खी (जल भक्षण करने वाले ), वाउभक्खी ' (वायु पर रहने वाले ), और सेवालभक्खों (शैवाल का भक्षण करने वाले )।
इसके सिवाय, अनेक तापस मूल, कंद, छाल, पत्र, पुष्प और बोज का सेवन करते थे, और कितने ही सड़े हुए मूल, कंद, छाल आदि द्वारा जीवन निर्वाह करते थे। बार-बार स्नान करते रहने से उनका शरीर पीला पड़ गया था। ये तापस-श्रमण गंगा के तट पर रहते और वानप्रस्थ आश्रम का पालन करते थे। अन्य तपस्वियों को भाँति ये भी समूह में चलते थे । कोडिन्न, दिन और सेवालि नाम के तापसों का उल्लेख आता है; ये लोग पांच-पांच सौ साधुओं के साथ परिभ्रमण करते तथा कंदमूल और सड़े हुए पत्र तथा शैवाल का भक्षण कर जीवन-निर्वाह करते थे । ये अष्टापद ( कैलाश) की यात्रा करने जा रहे थे।
(४) परिव्राजकश्रमण गेरुआ वस्त्र धारण करने के कारण इन्हें गेरुअ अथवा गैरिक भी कहा गया है। परिव्राजक-श्रमण ब्राह्मण धर्म के प्रतिष्ठित पण्डित होते थे। वशिष्ठधर्मसूत्र में उल्लेख है कि परिव्राजक को अपना सिर मुण्डित रखना चाहिए, एक वस्त्र अथवा चर्मखण्ड धारण करना चाहिए, गायों द्वारा उखाड़ी हुई घास से अपने शरीर को आच्छादित करना चाहिए तथा जमीन पर सोना चाहिए। ये लोग आवसथ ( अवसह ) में
१. रामायण ( ३.११.१२ ) में मंडकर्णी नामक तापस का उल्लेख है जो वायु पर जीवित रहता था; तथा महाभारत १.६६.४२ ।
२. देखिए ललितविस्तर, पृ० २४८ । ३. तुलना कीजिये, दीघनिकाय १, अम्बसुत्त पृ० ८८ । ४. औपपातिकसूत्र ३८, पृ० १७०, निरयावलियाओ ३, पृ० ३९।। ५. उत्तराध्ययनटीका १०, पृ० १५४-अ । ६. निशीथचूर्णी १३.४४२० की चूर्णी ।
७. १०.६-११; मलालसेकर, डिक्शनरी ऑव पाली प्रौपर नेम्स, जिल्द २, पृ० १५९ आदि; महाभारत १२.१९०.३।