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________________ ४१२ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [पांचवां खण्ड (२) शाक्य श्रमण शाक्य श्रमणों को रत्तवड (रक्तपट) अथवा तच्चन्निय (क्षणिकवादी) नाम से उल्लिखित किया गया है। उनके पंच स्कन्ध के सिद्धान्त का उल्लेख मिलता है। अनुयोगद्वार और नंदिसूत्र में बुद्धशासन को लौकिक श्रुतों में गिना गया है। आर्द्रककुमार और शाक्यपुत्रों के वाद-विवाद के सम्बन्ध में पहले कहा जा चुका है । निग्रन्थों और शाक्य श्रमणों के बोच अनेक शास्त्रार्थ हुआ करते थे। (३) तापस श्रमण वनवासी साधुओं को तापस कहा गया है। तापस श्रमण वनों में आश्रम बनाकर रहते थे । वे अपने ध्यान में संलग्न रहते, यज्ञ-याग करते, शरीर को कष्ट देने के लिए पंचाग्नि तप तपते, तथा अपने धर्मसूत्रों का अध्ययन करते । उनका अधिकांश समय कंदमूल और फलों के बटोरने में ही बीतता, और वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते रहते । व्यवहारभाष्य में तापसों के सम्बन्ध में कहा है कि वे ओखली (उदूखल) अथवा धान साफ करने के स्थान (खलय) के आसपास पड़े हुए धानों को बोनते और उन्हें पका कर खाते । कभी वे केवल इतने हो धान्य ग्रहण करते जितने कि एक चम्मच (दर्वी), दंड, या चुकटी से एक बार में उठाये जा सकते हों, या धान्यराशि पर फेंके हुए वस्त्र पर एक बार में लगे रह जाते हों ।' तापस-आश्रमों के उल्लेख मिलते हैं। महावीर अपनी विहारचर्या के समय मोराग संन्निवेश के आश्रम में ठहरे थे ।" उत्तरवाचाल में स्थित कनकखल नाम के आश्रम में पांच सौ तापस रहा करते थे। पोतनपुर में भी तापसों का एक आश्रम था जहां वल्कलचीरो का जन्म हुआ था। १. सूत्रकृतांग १.१.१७ । २. अनुयोगद्वारसूत्र ४१; नन्दिसूत्र ४२, पृ० १६३-अ । ३. निशीथचूर्णी १३.४४२० की चूर्णी । ४. व्यवहारभाष्य १०.२३-२५, देखिये वट्टकेर, मूलाचार ५.५४ । ५. आवश्यकनियुक्ति ४६३ । ६. आवश्यकचूणी, पृ० २७८ । ७. वही, पृ० ४५७ । तुलना कीजिए धम्मपदअट्ठकथा, २, पृ० २०९ आदि में उल्लिखित बाहिय दारुचीरिय के साथ । वल्कलचीरी आदि ऋषियों को
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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