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________________ ४०७ पांचवां खण्ड ] पहला अध्याय : श्रमण सम्प्रदाय अवस्था में देखकर आषाढ़भूति को फिर से वैराग्य हो आया ।' वेश्याजन्य उपद्रव वेश्याजन्य उपद्रवों को भी कमो नहीं थी। कभी रात्रि के समय वेश्या उपाश्रय में आकर साधुओं के साथ रहने का आग्रह करतो, तो पहले तो साधु उसे रोकने का प्रयत्न करते। यदि वह न मानतो तो साधुओं को उपाश्रय छोड़कर शून्यगृह या वृक्ष के नीचे जाकर रहने का विधान है । यदि बाहर ओस गिरती हो, या हरितकाय या त्रसजीव दिखायी देते हों, तो भी बाहर ही जाकर रहने का आदेश है। लेकिन यदि बाहर पोरों और जंगली जानवरों का भय हो, या वर्षा हो रही हो, तो कठोर वचनपूर्वक वेश्या को वहां से निकल जाने के लिए कहना चाहिए | यदि वह जाने से मना करे तो किसी सहस्रयोधी साधु को चाहिए कि उसे बांध कर राजकुल में ले जाये। इस सम्बन्ध में मागध गणिका आदि गणिकाओं के नाम उल्लेखनीय हैं जिन्होंने कूलबालक आदि मुनियों को चारित्र से भ्रष्ट किया था । वाद-विवादजन्य तथा अन्य संकट धर्म का प्रचार करने के लिए जैन श्रमणों को अन्य तीर्थकों के साथ वाद-विवाद में भी जूझना पड़ता था और इसके लिये उन्हें वाद, जल्प और वितंडा आदि का आश्रय लेना पड़ता था। श्रावस्ती के राजकुमार स्कंदक की बहन पुरंदरजसा का विवाह उत्तरापथ के अन्तर्गत कुम्भकारकृत नगर के राजा दंडको के साथ हुआ था। एक बार दंडकी का दूत पालक श्रावस्ती नगरी में आया। स्कंदक के साथ उसका विवाद हो पड़ा जिसमें पालक हार गया । कुछ समय बाद स्कंदक ने श्रमण-दीक्षा ग्रहण कर लो और संयोगवश साधुओं के साथ विहार करता हुआ वह कुम्भकारकृत नगर में पहुंचा। पालक ने उससे बदला लेने के लिए एक इक्षुयंत्र में सबको पेरना शुरू कर दिया। मथुरा के स्तूप को लेकर जैन भिक्षुओं और रक्तपटों में विवाद होने १. पिंडनियुक्ति ४७४ आदि । २. बृहत्कल्पभाष्य ४.४९२३-२५; निशीथभाष्य १.५५६-५९ । ३. सूत्रकृतांगटीका ४.१.२ । ४. निशीथभाष्य ५.२ . २६-३१ । . ५. वही १६.५७४०-४३ और चूर्णी ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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